Best Motivational Poems in hindi about success
Motivational Poems in hindi about success जीवन में समस्याए हमे सफलता के मार्ग से रोकने नही आती बल्कि यह हमे और बड़ी सफलता को प्राप्त करने लायक बनाने आती है|जो इन समस्याओ के साथ रहकर उसका डटकर मुकाबला करता है वो ही सफलता का असली हक़दार होता है|आप के लिए यहाँ top 5 कविताये प्रस्तुत है जो आपके जीवन की दिशा बदल सकती है|
गोपालदास “नीरज”
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है
माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है !
Motivational poems
2 कुछ हूँ मैं और कुछ नहीं भी हूँ|
एक सोच हूँ मैं एक आस भी हूँ, अरमान हूँ और कुछ ख़्वाब भी हूँ,
पर वो ख़्वाब नहीं, वो सोच नहीं उस अरमान की मुझको आस नहीं|
मैं धूल तो हूँ पर थार नहीं, एक कदम हूँ पर रफ़्तार नहीं|
बादल हूँ मैं तूफान नहीं, एक झलक हूँ मैं दीदार नहीं|
बाज़ार के बावरे शोर के बीच जंगल में छुपी खामोशी हूँ,
तेरी ज़िद्दी चुप्पी में बैठा ज़िद्दी बौराया शोर भी हूँ|
परेशानियाँ हूँ, परेशान भी हूँ, हल हूँ मैं और अंजान भी हूँ|
पानी हूँ मैं और प्यास भी हूँ, बारिश हूँ और अकाल भी हूँ|
मैं ताल नहीं मैं साज़ नहीं पर गीतों की आवाज़ हूँ मैं|
मैं पंख नहीं मैं पतंग नहीं पर एक बेफ़िक्र उड़ान हूँ मैं|
मैं दूर नहीं मैं पास नहीं, तेरे मन में तेरे साथ हूँ मैं
मैं तू नहीं, तू मैं नहीं, अपनी ही एक पहचान हूँ ‘मैं‘|
कुछ हूँ मैं और कुछ नहीं भी हूँ, कुछ ख़ास हूँ और कुछ आम हूँ मैं|
एक सोच हूँ मैं, एक आस हूँ मैं, अरमान हूँ और एक ख़्वाब हूँ मैं|
Motivational poems
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3. ज्यों निकल कर बादलों की गोद से।
थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी।।
सोचने फिर फिर यही जी में लगी।
आह क्यों घर छोड़कर मैं यों बढ़ी।।
दैव मेरे भाग्य में क्या है बढ़ा।
में बचूँगी या मिलूँगी धूल में।।
या जलूँगी गिर अंगारे पर किसी।
चू पडूँगी या कमल के फूल में।।
बह गयी उस काल एक ऐसी हवा।
वह समुन्दर ओर आई अनमनी।।
एक सुन्दर सीप का मुँह था खुला।
वह उसी में जा पड़ी मोती बनी।।
लोग यों ही है झिझकते, सोचते।
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर।।
किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें।
बूँद लौं कुछ और ही देता है कर।।
Motivational poems
4. -हरिवंशराय बच्चन
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
- सच हम नहीं सच तुम नहीं
सच है महज़ संघर्ष ही ।
संघर्ष से हट कर जिए तो क्या जिए हम या कि तुम।
जो नत हुआ वह मृत हुआ ज्यों वृन्त से झर कर कुसुम।
जो लक्ष्य भूल रुका नहीं,
जो हार देखा झुका नहीं,
जिसने प्रणय पाथेय माना जीत उसकी ही रही ।
सच हम नहीं सच तुम नहीं।
ऐसा करो जिससे न प्राणों में कहीं जड़ता रहे।
जो है जहाँ चुपचाप अपने आपसे लड़ता रहे।
जो भी परिस्थितियाँ मिलें,
काँटें चुभें, कलियाँ खिलें,
हारे नहीं इन्सान, है सन्देश जीवन का यही।
सच हम नहीं सच तुम नहीं।
हमने रचा आओ हमीं अब तोड़ दें इस प्यार को।
यह क्या मिलन, मिलना वही जो मोड़ दे मँझधार को।
जो साथ फूलों के चले,
जो ढाल पाते ही ढले,
वह ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी जो सिर्फ़ पानी-सी बही।
सच हम नहीं सच तुम नहीं।
संसार सारा आदमी की चाल देख हुआ चकित ।
पर झाँक कर देख दृगों(drigon) में, हैं सभी प्यासे थकित।
जब तक बंधी है चेतना,
जब तक हृदय दुख से घना,
तब तक न मानूँगा कभी इस राह को ही मैं सही।
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