Category: Successful Person Stories

These inspiring stories of success  gives you very nice collection of successful person  stories and   inspirational stories from the life of great personalities.
These inspiring stories for students to hard work.
If you are determine about being successful in life then you can do nothing better than motivating yourself about the inspirational stories of successful and famous persons,

which can change your life compeletly this life changing stories give hope of ray.

Most of the  persons who want to get success in life, career or business fail to do it because they don’t know what it takes to be successful and how the road to success looks like.

People just see the last result, which is the successful person, without having any idea about what this person went through.

You have to know the inspirational stories of successful people you will learnthe lesson of life  how the road to success looks like and your chance of succeeding in life will become much higher.

 

This includes many  true real stories with a good moral at the end, real-life examples of successful peoples and life stories of these people who have been part of their life journey.

Here we can have a look at a few inspirational stories that help students to work hard and lay their base for a successful life.

Below are short and best  inspirational stories of some of the most successful persons that can help you know a lot about the approach required to reach you goal.

When life has got you in a slump, turn to these inspiring short stories.

Not only is reading stories  like getting an internet hug for the soul, but they just may spark an idea or a change in you and your life for the better. 

Now Read it and get ready to smile on your face

  • Inspirational Short Stories Hindi That Can Change Life-8

    Inspirational Short Stories Hindi That Can Change Life-8

    Motivational hindi Story-1

    “आधी रोटी का कर्ज inspirational short stories

    पत्नी बार बार मां पर इल्जाम लगाए जा रही थी और पति बार बार उसको अपनी हद में रहने की कह रहा था लेकिन पत्नी चुप होने का नाम ही नही ले रही थी व् जोर जोर से चीख चीखकर कह रही थी कि

     

    “”उसने अंगूठी टेबल पर ही रखी थी और तुम्हारे और मेरे अलावा इस कमरें मे कोई नही आया अंगूठी हो ना हो मां जी ने ही उठाई है।।

    बात जब पति की बर्दाश्त के बाहर हो गई तो उसने पत्नी के गाल पर एक जोरदार तमाचा दे मारा अभी तीन महीने पहले ही तो शादी हुई थी ।

    पत्नी से तमाचा सहन नही हुआ वह घर छोड़कर जाने लगी और जाते जाते पति से एक सवाल पूछा कि तुमको अपनी मां पर इतना विश्वास क्यूं है..??

    तब पति ने जो जवाब दिया उस जवाब को सुनकर दरवाजे के पीछे खड़ी मां ने सुना तो उसका मन भर आया पति ने पत्नी को बताया कि

    “”जब वह छोटा था तब उसके पिताजी गुजर गए मां मोहल्ले के घरों मे झाडू पोछा लगाकर जो कमा पाती थी उससे एक वक्त का खाना आता था

    मां एक थाली में मुझे परोसा देती थी और खाली डिब्बे को ढककर रख देती थी और कहती थी मेरी रोटियां इस डिब्बे में है

    बेटा तू खा ले मैं भी हमेशा आधी रोटी खाकर कह देता था कि मां मेरा पेट भर गया है मुझे और नही खाना है

    मां ने मुझे मेरी झूठी आधी रोटी खाकर मुझे पाला पोसा और बड़ा किया है

    आज मैं दो रोटी कमाने लायक हो गया हूं लेकिन यह कैसे भूल सकता हूं कि मां ने उम्र के उस पड़ाव पर अपनी इच्छाओं को मारा है,

    वह मां आज उम्र के इस पड़ाव पर किसी अंगूठी की भूखी होगी ….

    यह मैं सोच भी नही सकता तुम तो तीन महीने से मेरे साथ हो मैंने तो मां की तपस्या को पिछले पच्चीस वर्षों से देखा है…

    यह सुनकर मां की आंखों से छलक उठे वह समझ नही पा रही थी कि बेटा उसकी आधी रोटी का कर्ज चुका रहा है या वह बेटे की आधी रोटी का कर्ज…

    life changing hindi stories

    Inspirational Story-2 “जीना इसी का नाम है!

    एक बार पचास लोगों का ग्रुप। किसी मीटिंग में हिस्सा ले रहा था।

    मीटिंग शुरू हुए अभी कुछ ही मिनट बीते थे कि स्पीकर अचानक ही रुका और सभी पार्टिसिपेंट्स को गुब्बारे 🏉देते हुए बोला , ” आप सभी को गुब्बारे पर इस मार्कर से अपना नाम लिखना है। ” सभी ने ऐसा ही किया।

    अब गुब्बारों को एक दुसरे कमरे में रख दिया गया।

    स्पीकर ने अब सभी को एक साथ कमरे में जाकर पांच मिनट के अंदर अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने के लिए कहा।

    सारे पार्टिसिपेंट्स तेजी से रूम में घुसे और पागलों की तरह अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने लगे।

    पर इस अफरा-तफरी में किसी को भी अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिल पा रहा था…

    5 पांच मिनट बाद सभी को बाहर बुला लिया गया।

    स्पीकर बोला , ” अरे! क्या हुआ , आप सभी खाली हाथ क्यों हैं ? क्या किसी को अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिला ?” ”

    नहीं ! हमने बहुत ढूंढा पर हमेशा किसी और के नाम का ही गुब्बारा हाथ आया…”, एक पार्टिसिपेंट कुछ मायूस होते हुए बोला।

    “कोई बात नहीं , आप लोग एक बार फिर कमरे में जाइये , पर इस बार जिसे जो भी गुब्बारा मिले उसे अपने हाथ में ले और उस व्यक्ति का नाम पुकारे जिसका नाम उसपर लिखा हुआ है। “, स्पीकर ने निर्दश दिया।

    एक बार फिर सभी पार्टिसिपेंट्स कमरे में गए, पर इस बार सब शांत थे , और कमरे में किसी तरह की अफरा- तफरी नहीं मची हुई थी। सभी ने एक दुसरे को उनके नाम के गुब्बारे दिए और तीन मिनट में ही बाहर निकले आये।

    स्पीकर ने गम्भीर होते हुए कहा ,” बिलकुल यही चीज हमारे जीवन में भी हो रही है।

    हर कोई अपने लिए ही जी रहा है , उसे इससे कोई मतलब नहीं कि वह किस तरह औरों की मदद कर सकता है , वह तो बस पागलों की तरह अपनी ही खुशियां ढूंढ रहा है , पर बहुत ढूंढने के बाद भी उसे कुछ नहीं मिलता ,

    हमारी ख़ुशी दूसरों की ख़ुशी में छिपी हुई है।

    जब तुम औरों को उनकी खुशियां देना सीख जाओगे तो अपने आप ही तुम्हे तुम्हारी खुशियां मिल जाएँगी। और यही मानव-जीवन का उद्देश्य है ।

    motivational hindi stories

    Inspiring Hindi Story-3

    “कहीं हम भी खूटियों से तो नहीं बंधे हैं?

    रेगिस्तानी मैदान से एक साथ कई ऊंट अपने मालिक के साथ जा रहे थे। अंधेरा होता देख मालिक ने एक सराय में रुकने का आदेश दे दिया।

    निन्यानवे ऊंटों को जमीन में खूंटियां गाड़कर उन्हें रस्सियों से बांध दिया मगर एक ऊंट के लिए खूंटी और रस्सी कम पड़ गई। सराय में खोजबीन की , पर व्यवस्था हो नहीं पाई।

    तब सराय के मालिक ने सलाह दी कि तुम खूंटी गाड़ने जैसी चोट करो और ऊंट को रस्सी से बांधने का अहसास करवाओ।

    यह बात सुनकर मालिक हैरानी में पड़ गया , पर दूसरा कोई रास्ता नहीं था , इसलिए उसने वैसा ही किया। झूठी खूंटी गाड़ी गई , चोटें की गईं।

    ऊंट ने चोटें सुनीं और समझ लिया कि बंध चुका है। वह बैठा और सो गया। सुबह निन्यानबे ऊंटों की खूटियां उखाड़ीं और रस्सियां खोलीं , सभी ऊंट उठकर चल पड़े , पर एक ऊंट बैठा रहा।

    मालिक को आश्चर्य हुआ – अरे , यह तो बंधा भी नहीं है , फिर भी उठ नहीं रहा है। सराय के मालिक ने समझाया – तुम्हारे लिए वहां खूंटी का बंधन नहीं है मगर ऊंट के लिए है।

    जैसे रात में व्यवस्था की , वैसे ही अभी खूंटी उखाड़ने और बंधी रस्सी खोलने का अहसास करवाओ। मालिक ने खूंटी उखाड़ दी जो थी ही नहीं , अभिनय किया और

    रस्सी खोल दी जिसका कोई अस्तित्व नहीं था। इसके बाद ऊंट उठकर चल पड़ा।

    न केवल ऊंट बल्कि मनुष्य भी ऐसी ही खूंटियों से और रस्सियों से बंधे होते हैं जिनका कोई अस्तित्व नहीं होता। मनुष्य बंधता है अपने ही गलत दृष्टिकोण से , मिथ्या सोच से , विपरीत मान्यताओं की पकड़ से।

    ऐसा व्यक्ति सच को झूठ और झूठ को सच मानता है। वह दोहरा जीवन जीता है। उसके आदर्श और आचरण में लंबी दूरी होती है।

    इसलिए जरूरी है कि मनुष्य का मन जब भी जागे , लक्ष्य का निर्धारण सबसे पहले करे। बिना उद्देश्य मीलों तक चलना सिर्फ थकान, भटकाव और नैराश्य देगा , मंजिल नही।

    स्वतंत्र अस्तित्व के लिए मनुष्य में चाहिए सुलझा हुआ दृष्टिकोण, देश , काल , समय और व्यक्ति की सही परख , दृढ़ संकल्प शक्ति , पाथेय की पूर्ण तैयारी , अखंड आत्मविश्वास और स्वयं की पहचान।

    best inspiring hindi stories

    Inspirational Hindi Story-4

    “हम गुस्से मे चिल्लाते क्यों हैं ?

    एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। अचानक उन्होंने सभी शिष्यों से एक सवाल पूछा। बताओ जब दो लोग एक दूसरे पर गुस्सा करते हैं तो जोर-जोर से चिल्लाते क्यों हैं?

    शिष्यों ने कुछ देर सोचा और एक ने उत्तर दिया : हम अपनी शांति खो चुके होते हैं इसलिए चिल्लाने लगते हैं।

    संत ने मुस्कुराते हुए कहा : दोनों लोग एक दूसरे के काफी करीब होते हैं तो फिर धीरे-धीरे भी तो बात कर सकते हैं। आखिर वह चिल्लाते क्यों हैं?

    कुछ और शिष्यों ने भी जवाब दिया लेकिन संत संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने खुद उत्तर देना शुरू किया।

    वह बोले : जब दो लोग एक दूसरे से नाराज होते हैं तो उनके दिलों में दूरियां बहुत बढ़ जाती हैं। जब दूरियां बढ़ जाएं तो आवाज को पहुंचाने के लिए उसका तेज होना जरूरी है।

    दूरियां जितनी ज्यादा होंगी उतनी तेज चिल्लाना पड़ेगा। दिलों की यह दूरियां ही दो गुस्साए लोगों को चिल्लाने पर मजबूर कर देती हैं। वह आगे बोले, जब दो लोगों में प्रेम होता है तो वह एक दूसरे से बड़े आराम से और धीरे-धीरे बात करते हैं।

    प्रेम दिलों को करीब लाता है और करीब तक आवाज पहुंचाने के लिए चिल्लाने की जरूरत नहीं। जब दो लोगों में प्रेम और भी प्रगाढ़ हो जाता है तो वह खुसफुसा कर भी एक दूसरे तक अपनी बात पहुंचा लेते हैं।

    इसके बाद प्रेम की एक अवस्था यह भी आती है कि खुसफुसाने की जरूरत भी नहीं पड़ती। एक दूसरे की आंख में देख कर ही समझ आ जाता है कि क्या कहा जा रहा है।

    शिष्यों की तरफ देखते हुए संत बोले : अब जब भी कभी बहस करें तो दिलों की दूरियों को न बढ़ने दें। शांत चित्त और धीमी आवाज में ही बात करें। ध्यान रखें कि कहीं दूरियां इतनी न बढ़ जाएं कि वापिस आना ही मुमकिन न हो।

    https://www.keepinspiring.me/positive-inspirational-life-quotes/

    Life Changing Story-5

    कबूतर और इंसान

    एक प्राचीन मंदिर की छत पर कुछ कबूतर राजीखुशी रहते थे।जब वार्षिकोत्सव की तैयारी के लिये मंदिर का जीर्णोद्धार होने लगा तब कबूतरों को मंदिर छोड़कर पास के चर्च में जाना पड़ा।

    चर्च के ऊपर रहने वाले कबूतर भी नये कबूतरों के साथ राजीखुशी रहने लगे।

    क्रिसमस नज़दीक था तो चर्च का भी रंगरोगन शुरू हो गया।अत: सभी कबूतरों को जाना पड़ा नये ठिकाने की तलाश में।

    किस्मत से पास के एक मस्जिद में उन्हे जगह मिल गयी और मस्जिद में रहने वाले कबूतरों ने उनका खुशी-खुशी स्वागत किया।

    रमज़ान का समय था मस्जिद की साफसफाई भी शुरू हो गयी तो सभी कबूतर वापस उसी प्राचीन मंदिर की छत पर आ गये।

    एक दिन मंदिर की छत पर बैठे कबूतरों ने देखा कि नीचे चौक में धार्मिक उन्माद एवं दंगे हो गये।

    छोटे से कबूतर ने अपनी माँ से पूछा “” माँ ये कौन लोग हैं ?””

    माँ ने कहा “” ये मनुष्य हैं””।

    छोटे कबूतर ने कहा “” माँ ये लोग आपस में लड़ क्यों रहे हैं ?””

    माँ ने कहा “” जो मनुष्य मंदिर जाते हैं वो हिन्दू कहलाते हैं, चर्च जाने वाले ईसाई और मस्जिद जाने वाले मनुष्य मुस्लिम कहलाते हैं।””

    छोटा कबूतर बोला “” माँ एसा क्यों ? जब हम मंदिर में थे तब हम कबूतर कहलाते थे, चर्च में गये तब भी कबूतर कहलाते थे और जब मस्जिद में गये तब भी कबूतर कहलाते थे, इसी तरह यह लोग भी मनुष्य कहलाने चाहिये चाहे कहीं भी जायें।””

    माँ बोली “” मेनें, तुमने और हमारे साथी कबूतरों ने उस एक ईश्वरीय सत्ता का अनुभव किया है इसलिये हम इतनी ऊंचाई पर शांतिपूर्वक रहते हैं।

    इन लोगों को उस एक ईश्वरीय सत्ता का अनुभव होना बाकी है , इसलिये यह लोग हमसे नीचे रहते हैं और आपस में दंगे फसाद करते हैं।””

    Best Motivational Hindi Story -6

    डर के आगे जीत हैं

     

    बहुत समय पहले की बात है, एक जंगल में एक चूहा था जो हमेशा बिल्ली के डर से सहमा सहमा रहता था। बिल्ली के डर के कारन वो अक्सर अपने बिल में ही छुप कर रहता था, न तो अपने साथी चूहों के साथ खेलता और न ही बाहर निकलने का साहस जुटा पाता था।

     

    एक दिन एक बुजर्ग ने उस डरपोक चूहे को एक चमत्कारी स्वामी जी के बारे में बताया जो सबकी मदद करते थे। डरपोक चूहा बड़ी हिम्मत कर बिल के बाहर निकला और स्वामीजी के पास गया।

    चूहे ने अपनी समस्या स्वामी जी को बताई और मदद की गुहार लगाकर रोने लगा। स्वामी जी को उस चूहे पर दया आने लगी और उन्होंने उस चूहे को आशीर्वाद देकर अपने शक्ति से बिल्ली बना दिया।

     

    कुछ दिनों तक बिल्ली ठीक रही पर अब उसे कुत्तो का डर सताने लगा, वह फिर स्वामी जी के पास जाकर रोने लगा। स्वामी जी ने उसे अपनी शक्ति से कुत्ता बना दिया। कुत्ता बनने के बाद वह जंगल में शेर से डरने लगा। स्वामी जी ने उसे शेर बना दिया।

     

    शेर की ताकत और क्षमता होने के बावजूद अब वह शिकारी से डर-डर कर रहने लगा। वह फिर से स्वामीजी के पास गया और मदद की गुहार लगाने लगा।

    स्वामिजी ने शेर की बात सुनकर उसे फिर से चूहा बना दिया और कहा,” मै अपनी शक्ति से चाहे जो कर लू या तुम्हे जो बना दू फिर भी मै तुम्हारी कोई भी मदद नहीं कर सकता क्योंकि तुम्हारा दिल हमेशा उस डरपोक चूहे वाला ही रहेंगा।”

     

    यह सिर्फ एक कहानी नहीं है ! कही न कही हम सभी में से बहुत से लोगो की यही हकीकत है। आज हम सब किसी न किसी डर के खौंफ में जी रहे है।

    किसी को मौत का डर है, किसी को अपनों से बिछड़ने का, अस्वीकृति का, बॉस का या फिर असफल होने का डर है। डर नामक इस बीमारी की वजह से हम हम उस मुकाम तक नहीं पहुच पाते जिस के हम काबिल है। गब्बर ने भी सही कहा है,”जो डर गया समझो मर गया!”।

     

    आप जितना अपने डर से दूर भागेंगे वह उनता ही आप के पास आकर आप पर हावी हो जायेंगा। जिस दिन आप हिम्मत उठाकर उसका सामना करेंगे वह पल भर में गायब हो जायेंगा और तब आपकी समझ में आ जायेंगा की जिससे आप डर रहे थे वो केवल आप के मन का वहम है।

    अपने मन में बसे डर को दूर भगाकर आत्मविश्वास और मेहतन से आप अपनी हर मंजिल को हासिल कर सकते है।

    And If you like this inspirational short stories that can change life  please comment and join with us.
    Because your support encourage us.

  • Motivational stories in hindi for success part-7

    Motivational stories in hindi for success part-7

    Motivational hindi Story-1 अंधा घोड़ा

     

    motivational stories in hindi

    शहर के नज़दीक बने एक फॉर्म हाउस में दो घोड़े रहते थे। दूर से देखने पर वो दोनों बिल्कुल ठीक दिखते थे, पर पास जाने पर पता चलता था कि उनमे से एक घोड़ा अँधा है।

     

    पर अंधे होने के बावजूद फॉर्म के मालिक ने उसे वहां से निकाला नहीं था। बल्कि उसे और भी अधिक सुरक्षा और आराम के साथ रखा था।

    अगर कोई थोडा और ध्यान देता तो उसे ये भी पता चलता कि मालिक ने दूसरे घोड़े के गले में एक घंटी बाँध रखी थी, जिसकी आवाज़ सुनकर अँधा घोड़ा उसके पास पहुंच जाता और उसके पीछे-पीछे बाड़े में घूमता।

     

    घंटी वाला घोड़ा भी अपने अंधे मित्र की परेशानी समझता था, वह बीच-बीच में पीछे मुड़कर देखता और इस बात को सुनिश्चित करता कि कहीं उसका साथी रास्ते से भटक ना जाए।

     

    वह ये भी सुनिश्चित करता कि उसका मित्र सुरक्षित; वापस अपने स्थान पर पहुच जाए, और उसके बाद ही वो अपनी जगह की ओर बढ़ता था।

    Moral- दोस्तों! बाड़े के मालिक की तरह ही भगवान हमें बस इसलिए नहीं छोड़ देते कि हमारे अन्दर कोई दोष या कमियां हैं। वो हमारा ख्याल रखते हैं, और हमें जब भी ज़रुरत होती है तो किसी ना किसी को हमारी मदद के लिए भेज देते हैं।

     

    कभी-कभी हम वो अंधे घोड़े होते हैं, जो भगवान द्वारा बांधी गयी घंटी की मदद से अपनी परेशानियों से पार पाते हैं। तो कभी हम अपने गले में बंधी घंटी द्वारा दूसरों को रास्ता दिखाने के काम आते हैं॥

    hindi motivational story

    inspirational hindi Story-2

    धर्म का मर्म

    एक साधु शिष्यों के साथ कुम्भ के मेले में भ्रमण कर रहे थे। एक स्थान पर उनने एक बाबा को माला फेरते देखा।

    लेकिन वह बाबा माला फेरते- फेरते बार- बार आँखें खोलकर देख लेते कि लोगों ने कितना दान दिया है। साधु हँसे व आगे बढ़ गए।

    आगे एक पंडित जी भागवत कह रहे थे, पर उनका चेहरा यंत्रवत था। शब्द भी भावों से कोई संगति नहीं खा रहे थे, चेलों की जमात बैठी थी। उन्हें देखकर भी साधु खिल- खिलाकर हँस पड़े।

    थोड़ा आगे बढ़ने पर इस मण्डली को एक व्यक्ति रोगी की परिचर्या करता मिला। वह उसके घावों को धोकर मरहम पट्टी कर रहा था।

     

    साथ ही अपनी मधुर वाणी से उसे बार- बार सांत्वना दे रहा था।

    साधु कुछ देर उसे देखते रहे, उनकी आँखें छलछला आईं।

    आश्रम में लौटते ही शिष्यों ने उनसे पहले दो स्थानों पर हँसने व फिर रोने का कारण पूछा।

     

    वे बोले-‘बेटा पहले दो स्थानों पर तो मात्र आडम्बर था पर भगवान की प्राप्ति के लिए एक ही व्यक्ति आकुल दिखा- वह, जो रोगी की परिचर्या कर रहा था।

     

    उसकी सेवा भावना देखकर मेरा हृदय द्रवित हो उठा और सोचने लगा न जाने कब जनमानस धर्म के सच्चे स्वरूप को समझेगा।’

    hindi inspirational stories

     

    inspiring hindi Story-3

    बड़ों की बात मानो

    एक बहुत घना जंगल था, उसमें पहाड़ थे और शीतल निर्मल जल के झरने बहते थे। जंगल में बहुत- से पशु रहते थे। पर्वत की गुफा में एक शेर- शेरनी और इन के दो छोटे बच्चे रहते थे।

     

    शेर और शेरनी अपने बच्चों को बहुत प्यार करते थे।

    जब शेर के बच्चे अपने माँ बाप के साथ जंगल में निकलते तो उन्हें बहुत अच्छा लगता था। लेकिन शेर- शेरनी अपने बच्चों को बहुत कम अपने साथ ले जाते थे।

     

    वे बच्चों को गुफा में छोड़कर वन में अपने भोजन की खोज में चले जाया करते थे।

    शेर और शेरनी अपने बच्चों को बार- बार समझाते थे कि वे अकेले गुफा से बाहर भूलकर भी न निकलें। लेकिन बड़े बच्चे को यह बात अच्छी नहीं लगती थी।

     

    एक दिन शेर- शेरनी जंगल में गये थे, बड़े बच्चे ने छोटे से कहा- चलो झरने से पानी पी आएँ और वन में थोड़ा घूमें। हिरनों को डरा देना मुझे बहुत अच्छा लगता है।

    छोटे बच्चे ने कहा- ‘पिता जी ने कहा है कि अकेले गुफा से मत निकलना। झरने के पास जाने को बहुत मना किया है।

     

    तुम ठहरो पिताजी या माताजी को आने दो। हम उनके साथ जाकर पानी पीलेंगे।’
    बड़े बच्चे ने कहा- ‘मुझे प्यास लगी है। सब पशु तो हम लोगों से डरते ही हैं। फिर डरने की क्या बातहै?’

    छोटा बच्चा अकेला जाने को तैयार नहीं हुआ। उसने कहा- ‘मैं तो माँ- बाप की बात मानूँगा। मुझे अकेला जाने में डर लगता है।’ बड़े भाई ने कहा।

     

    ‘तुम डरपोक हो, मत जाओ, मैं तो जाता हूँ।’ बड़ा बच्चा गुफा से निकला और झरने के पास गया। उसने पेट भर पानी पिया और तब हिरनों को ढकतेहुए इधर- उधर घूमने लगा।

    जंगल में उस दिन कुछ शिकारी आये हुए थे। शिकारियों ने दूर से शेर के बच्चे को अकेले घूमते देखा तो सोचा कि इसे पकड़कर किसी चिड़िया घर में बेच देने से अच्छे रुपये मिलेंगे।

     

    शिकारियों ने शेर के बच्चे को चारों ओर से घेर लिया और एक साथ उस पर टूट पड़े। उन लोगों ने कम्बल डालकर उस बच्चे को पकड़ लिया।

    बेचारा शेर का बच्चा क्या करता। वह अभी कुत्ते जितना बड़ा भी नहीं हुआ था। उसे कम्बल में खूब लपेटकर उन लोगों ने रस्सियों से बाँध दिया। वह न तो छटपटा सकता था, न गुर्रा सकता था।

    शिकारियों ने इस बच्चे को एक चिड़िया घर को बेच दिया। वहाँ वह एक लोहे के कटघरे में बंद कर दिया गया। वह बहुत दुःखी था।

     

    उसे अपने माँ- बाप की बहुत याद आती थी। बार- बार वह गुर्राताऔर लोहे की छड़ों को नोचता था, लेकिन उसके नोचने से छड़ तो टूट नहीं सकती थी।

    जब भी वह शेर का बच्चा किसी छोटे बालक को देखता तो बहुत गुर्राता और उछलता था। यदि कोई उसकी भाषा समझा सकता तो वह उससे अवश्य कहता- ‘तुम अपने माँ- बाप तथा बड़ों की बात अवश्य मानना।

     

    बड़ों की बात न मानने से पीछे पश्चात्ताप करना पड़ता है। मैं बड़ों की बात न मानने से ही यहाँ बंदी हुआ हूँ।’

    Moral- सच है- जे सठ निज अभिमान बस, सुनहिं न गुरुजन बैन।
    जे जग महँ नित लहहिं दुःख, कबहुँ न पावहिं चैन॥

    hindi life changing stories

     

    Story-4 सेवाभावी की कसौटी

    स्वामीजी का प्रवचन समाप्त हुआ। अपने प्रवचन में उन्होंने सेवा- धर्म की महत्ता पर विस्तार से प्रकाश डाला और अन्त में यह निवेदन भी किया कि जो इस राह पर चलने के इच्छुक हों, वह मेरे कार्य में सहयोगी हो सकते हैं।

     

    सभा विसर्जन के समय दो व्यक्तियों ने आगे बढ़कर अपने नामलिखाये। स्वामीजी ने उसी समय दूसरे दिन आने का आदेश दिया।

    सभा का विसर्जन हो गया।

    लोग इधर- उधर बिखर गये। दूसरे दिन सड़क के किनारे एक महिला खड़ी थी, पास में घास का भारी ढेर। किसी राहगीर की प्रतीक्षा कर रही थी कि कोई आये और उसका बोझा उठवा दे।

     

    एक आदमी आया, महिला ने अनुनय- विनय की, पर उसने उपेक्षा की दृष्टि से देखा और बोला- ‘‘अभी मेरे पास समय नहीं है।

    मैं बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य को सम्पन्न करने जा रहा हूँ।’’इतना कह वह आगे बढ़ गया। थोड़ी ही दूर पर एक बैलगाड़ी दलदल में फँसी खड़ी थी।

     

    गाड़ीवान् बैलों पर डण्डे बरसा रहा था पर बैल एक कदम भी आगे न बढ़ पा रहे थे। यदि पीछे से कोई गाड़ी के पहिये को धक्का देकर आगे बढ़ा दे तो बैल उसे खींचकर दलदल से बाहर निकाल सकते थे।

     

    गाड़ीवान ने कहा- ‘‘भैया! आज तो मैं मुसीबत में फँस गया हूँ। मेरी थोड़ी सहायता करदो।’’

    राहगीर बोला- मैं इससे भी बड़ी सेवा करने स्वामी जी के पास जा रहा हूँ। फिर बिना इस कीचड़ में घुसे, धक्का देना भी सम्भव नहीं, अतः अपने कपड़े कौन खराब करे।

     

    इतना कहकर वह आगे बढ़ गया। और आगे चलने पर उसे एक नेत्रहीन वृद्धा मिली। जो अपनी लकड़ी सड़क पर खटखट कर दयनीय स्वर से कह रही थी,

    ‘‘कोई है क्या? जो मुझे सड़क के बायीं ओर वाली उस झोंपड़ी तक पहुँचा दे। भगवान् तुम्हारा भला करेगा। बड़ा अहसान होगा।

     

    ’’ वह व्यक्ति कुड़कुड़ाया- ‘‘क्षमा करोमाँ! क्यों मेरा सगुन बिगाड़ती हो? तुम शायद नहीं जानती मैं बड़ा आदमी बनने जा रहा हूँ। मुझे जल्दी पहुँचना है।’’

    इस तरह सबको दुत्कार कर वह स्वामीजी के पास पहुँचा। स्वामीजी उपासना के लिए बैठने ही वाले थे, उसके आने पर वह रुक गये।

    उन्होंने पूछा- क्या तुम वही व्यक्ति हो, जिसने कल की सभा में मेरे निवेदन पर समाज सेवा का व्रत लिया था और महान् बनने की इच्छा व्यक्त की थी।

    जी हाँ! बड़ी अच्छी बात है, आप समय पर आ गये। जरा देर बैठिये, मुझे एक अन्य व्यक्ति की भी प्रतीक्षा है, तुम्हारे साथ एक और नाम लिखाया गया है।

    जिस व्यक्ति को समय का मूल्य नहीं मालुम, वह अपने जीवन में क्या कर सकता है? उस व्यक्ति ने हँसते हुए कहा। स्वामीजी उसके व्यंग्य को समझ गये थे,

    फिर भी वह थोड़ी देर और प्रतीक्षा करना चाहते थे। इतने में ही दूसरा व्यक्ति भी आ गया।

     

    उसके कपड़े कीचड़ में सने हुए थे। साँस फूल रही थी। आते ही प्रणाम कर स्वामी जी से बोला- ‘‘कृपा कर क्षमा करें! मुझे आने में देर हो गई, मैं घर से तो समय पर निकला था, पर रास्ते में एक बोझा उठवाने में,

     

    एक गाड़ीवान् की गाड़ी को कीचड़ से बाहर निकालने में तथा एक नेत्रहीन वृद्धा को उसकी झोंपड़ी तक पहुँचाने में कुछ समय लग गया और पूर्व निर्धारित समय पर आपकी सेवा में उपस्थित न हो सका।’’

    स्वामीजी ने मुस्कारते हुए प्रथम आगन्तुक से कहा- दोनों की राह एक ही थी, पर तुम्हें सेवा के जो अवसर मिले, उनकी अवहेलना कर यहाँ चले आये।

    तुम अपना निर्णय स्वयं ही कर लो, क्या सेवा कार्यों में मुझे सहयोग प्रदान कर सकोगे?

    जिस व्यक्ति ने सेवा के अवसरों को खो दिया हो, वह भला क्या उत्तर देता

    Moral- Service is man Service to god

    stories for success in hindi

     

    Story-5 ज्ञान की प्यास

    उन दिनों महादेव गोविंद रानडे हाई कोर्ट के जज थे। उन्हें भाषाएँ सीखने का बड़ा शौक था। अपने इस शौक के कारण उन्होंने अनेक भाषाएँ सीख ली थीं; किंतु बँगला भाषा अभी तक नहीं सीख पाए थे।

     

    अंत में उन्हें एक उपाय सूझा। उन्होंने एक बंगाली नाई से हजामत बनवानी शुरू कर दी। नाई जितनी देर तक उनकी हजामत बनाता, वे उससे बँगला भाषा सीखते रहते।

    रानडे की पत्नी को यह बुरा लगा। उन्होंने अपने पति से कहा, ‘‘आप हाई कोर्ट के जज होकर एक नाई से भाषा सीखते हैं। कोई देखेगा तो क्या इज्जत रह जाएगी ! आपको बँगला सीखनी ही है तो किसी विद्वान से सीखिए।’’

    रानडे ने हँसते हुए उत्तर दिया, ‘‘मैं तो ज्ञान का प्यासा हूँ। मुझे जाति-पाँत से क्या लेना-देना ?’’

    यह उत्तर सुन पत्नी फिर कुछ न बोलीं।

    Moral- ज्ञान ऊँच-नीच की किसी पिटारी में बंद नहीं रहता।

     

     

    Story -5

     

    “मन का आराम

     

    मतंग ऋषि पशु-पक्षियों के प्रति काफी स्नेह रखते थे। अक्सर वह अध्ययन और ईश्वरोपासना के बाद पक्षियों के साथ खेलने लग जाते थे। गौरैया और कौवे उनके इशारे पर जमीन पर उतर आते और उनके कंधों व हाथों पर बैठ जाते थे।

     

    एक दिन जब वे पक्षियों के बीच चहक रहे थे तभी अनंग ऋषि वहां आए। वह मतंग ऋषि का बहुत सम्मान करते थे।

    उन्हें पक्षियों के साथ खेलते देख वह बोले, ‘महाराज, आप इतने बड़े विद्वान होकर बच्चों की तरह चिड़ियों के साथ खेल रहे हैं। इससे आपका मूल्यवान समय नष्ट नहीं होता?’

     

    अनंग ऋषि के इस प्रश्न को सुनकर मतंग ऋषि मुस्करा दिए और उन्होंने अपने एक शिष्य को धनुष लेकर आने के लिए कहा। शिष्य कुछ ही देर में धनुष लेकर आ गया।

    मतंग ऋषि ने धनुष लिया और उसकी डोरी ढीली करके रख दी।

     

    अनंग ऋषि हैरानी से मतंग ऋषि को देखकर बोले, ‘आपने धनुष की डोरी ढीली करके क्यों रखी? आप इसके माध्यम से क्या कहना चाहते हैं?’

     

    मतंग ऋषि बोले, ‘मैंने तुम्हारे प्रश्न का जवाब दिया है।

    अब मैं इसे विस्तार से बताता हूं। हमारा मन धनुष की तरह है। अगर धनुष पर डोरी हमेशा चढ़ी रहे तो उसकी मजबूती कुछ ही समय में चली जाती है और वह जल्दी टूट जाता है,

     

    किंतु अगर काम पड़ने पर ही इस पर डोरी चढ़ाई जाए तो वह न सिर्फ अधिक समय तक टिकता है,

     

    बल्कि उससे काम भी अच्छे तरीके से होता है। इसी प्रकार काम करने पर ही मन को एकाग्र करना चाहिए। काम के बाद यदि उसे आराम मिलता रहे तो मन और अधिक मजबूत होगा। उसे स्फूर्ति मिलेगी। इससे वह लंबे समय तक स्वस्थ रहता है।’

     

    मतंग ऋषि का जवाब सुनकर अनंग ऋषि हाथ जोड़कर बोले, ‘मैं आपकी बात समझ गया। अब पता चला कि आप क्यों लगातार हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर रहे हैं।’ यह कहकर वह वहां से चले गए।

    Moral: We should give relaxe to mind anyhow.

    https://www.brainyquote.com/topics/motivational

    Story -6

    “गुरु गोविंद सिंह जी से जुड़ी प्रेरणादायक कहानी

     

    यह बात उस समय की है जब गुरु गोविंद सिंह जी मुगलों से संघर्ष कर रहे थे। युद्ध में उनके सभी शिष्य अपने-अपने तरीके से सहयोग कर रहे थे।

     

    शाम को युद्ध समाप्त हो जाने के बाद गुरु गोविंद सिंह जी के सभी सेनानी उनके साथ बैठकर उनसे उपदेश ग्रहण करते और आगे की रणनीति पर विचार-विमर्श करते थे।

     

    हर सेनानी को गुरु जी ने निश्चित जिम्मेदारी सौंप रखी थी ताकि वे अपना ध्यान युद्ध पर लगा सकें।

     

    एक दिन उन्होंने अपने एक शिष्य “भाई घनैय्या जी” को युद्ध में सैनिकों को पानी पिलाने का काम सौंपा। वह अपने कंधे पर पानी से भरा मशक लटकाकर सैनिकों को पानी पिलाने के काम में तन-मन से जुट गया। युद्ध करते हुए काफी समय बीत गया।

     

    एक दिन किसी सैनिक ने गुरु गोविंद सिंह जी से शिकायत की कि ‘भाई घनैय्या जी! घायल सिखों के साथ दुश्मन के भी घायल सैनिकों को पानी पिलाता है।

     

    जब उसे मना करते हैं तो वह हमारी बात को स्वीकार नहीं करता और अपने काम में लगा रहता है।’

     

    गुरु जी ने घनैय्या को अपने पास बुलाया और पूछा, “क्यों भाई घनैय्या जी! क्या यह सच है कि तुम घायल सिख सैनिकों के साथ मुगलों के सैनिकों को भी पानी पिलाते हो?”

     

    घनैय्या ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया, “हां, गुरु महाराज! यह पूरी तरह सच है कि मैं शत्रु के सैनिकों को भी पानी पिलाता हूं क्योंकि युद्ध भूमि में पहुंचने पर मुझे शत्रु और मित्र में कोई अंतर नहीं दिखाई देता।

     

    फिर मंत आपकी दी हुई शिक्षा के अनुसार सब में एक ही परमात्मा को देखता हूं। इसलिए मुझे जो भी घायल पड़ा दिखाई देता है, वह चाहे सिख हो या मुगल, मैं उन सभी को समान रूप से पानी पिलाता हूं।”

     

    गुरु जी ने भाई घनैय्या जी, का उत्तर सुनकर उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, “तूने मेरी दी हुई शिक्षा को सही अर्थों में आत्मसात किया है और उसे सार्थक सिद्ध किया है। तू मेरा सच्चा शिष्य है।”

     

    Moral- दोस्त-दुश्मन, अपना-पराया, इनसे ऊपर उठ कर की गई सेवा ही मानव धर्म कहलाती है।























  • Mary Kom Life Story in Hindi

    Mary Kom Life Story in Hindi

    मैरी कॉम की जीवनी

    एक महिला खिलाड़ी जिन्होंने अपनी महान उपलब्धियों से भारत को गौरवान्वित किया है, ऐसी महान महिला का नाम है मेरी कोम, जो एक अकेली भारतीय महिला बॉक्सर है।

    मेरी ने 2012 में हुए ओलंपिक में क्वालीफाई किया था, और ब्रोंज मैडल हासिल किया था। पहली बार कोई भारतीय बॉक्सर महिला यहाँ तक पहुंची थी। इसके अलावा वे 5 बार वर्ल्ड बॉक्सर चैम्पियनशीप जीत चुकी है।

    मेरी ने अपने बॉक्सिंग करियर की शुरुवात 18 साल की उम्र में ही कर दी थी। मेरी कोम समस्त भारत के लिए प्रेरणा स्त्रोत है, इनका जीवन कई उतार चढ़ाव से भरा हुआ रहा।

    बॉक्सिंग में करियर बनाने के लिए इन्होने बहुत मेहनत की और अपने परिवार तक से लड़ बैठी थी। मेरी कोम का पुरा नाम मांगते चुंगनेजंग मेरी कोम है।

    मेरी कोम का जन्म 1 मार्च 1983 में कन्गथेइ, मणिपुरी, भारत में हुआ था। इनके पिता एक गरीब किसान थे।

    ये चार भाई बहनों में सबसे बड़ी थी, कम उम्र से ही मेरी बहुत मेहनती रही है, अपने माता पिता की मदद करने के लिए वे भी उनके साथ काम करती थी। साथ ही वे अपने भाई बहनों की देखभाल करती थी।

    मेरी ने इन सब के बाद भी पढाई की और इसकी शुरुवात ‘लोकटक क्रिस्चियन मॉडल हाई स्कूल’ से की, जहाँ वे 6th तक पढ़ी।

    इसके बाद संत ज़ेवियर कैथोलिक स्कूल चली गई, जहाँ से इन्होने कक्षा आठवीं की परीक्षा पास की। आगे की पढाई 9th and 10th के लिए वे आदिमजाति हाई स्कूल चली गई, किन्तु वे परीक्षा में पास नहीं हो पाई।

    स्कूल की पढाई मेरी ने बीच में ही छोड़ दी और आगे उन्होंने NIOS की परीक्षा दी। इसके बाद इन्होंने अपना ग्रेजुएशन चुराचांदपुर कॉलेज, इम्फाल (मणिपुर की राजधानी) से किया।

    मेरी को बचपन से ही एथलीट बनने का शौक रहा, स्कूल के समय में वे फुटबॉल जैसे में हिस्सा लेती थी।

    लेकिन मजाक की बात यह है कि उन्होंने बॉक्सिंग में कभी भाग नहीं लिया था। सन 1998 में बॉक्सर ‘डिंगको सिंह’ ने एशियन गेम्स में गोल्ड मैडल जीता, वे मणिपुर के थे। उनकी इस जीत से उनकी पूरी मातृभूमि झूम उठी थी।

    यहाँ मेरी ने बॉक्सिंग करते हुए डिंगको को देखा, और इसे अपना करियर बनाने की ठान ली। इसके बाद उनके सामने पहली चुनौती थी, अपने घर वालों को इसके लिए राजी करना।

    छोटी जगह के साधारण से ये लोग, बॉक्सिंग को पुरुषों का खेल समझते थे, और उन्हें लगता था इस तरह के गेम में बहुत ताकत मेहनत लगती है, जो इस कम उम्र की लड़की के लिए ठीक नहीं है।

    मेरी ने मन में ठान लिया था कि वे अपने लक्ष्य तक जरुर पहुंचेंगी, चाहे इसके लिए उन्हें कुछ भी क्यों न करना पड़े। मेरी ने अपने माँ बाप को बिना बताये इसके लिए ट्रेनिंग शुरू कर दी।

    एक बार इन्होने ‘खुमान लम्पक स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स’ में लड़कियों को लड़कों से बॉक्सिंग करते देखा, जिसे देख वे स्तब्ध रे गई। यहाँ से उनके मन में उनके सपने को लेकर विचार और परिपक्व हो गए।

    वे अपने गाँव से इम्फाल गई और मणिपुर राज्य के बॉक्सिंग कोच एम् नरजीत सिंह से मिली और उन्हें ट्रेनिंग देने के लिए निवेदन किया। वे इस खेल के प्रति बहुत भावुक थी, साथ वे एक जल्दी सिखने वाली विद्यार्थी थी। ट्रेनिंग सेंटर से जब सब चले जाते थे, तब भी वे देर रात तक प्रैक्टिस करती रहती थी।

    ~मेरी कॉम करियर ~

    बॉक्सिंग शुरू करने के बाद मेरी को पता था कि उनका परिवार उनके बॉक्सिंग में करियर बनाने के विचार को कभी नहीं मानेगा, जिस वजह से उन्होंने इस बात को अपने परिवार से छुपा कर रखा था।

    1998 से 2000 तक वे अपने घर में बिना बताये इसकी ट्रेनिंग लेती रही। सन 2000 में जब मेरी ने ‘वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशीप, मणिपुर’ में जीत हासिल की, और इन्हें बॉक्सर का अवार्ड मिला, तो वहां के हर एक समाचार पत्र में उनकी जीत की बात छपी, तब उनके परिवार को भी उनके बॉक्सर होने का पता चला।

    इस जीत के बाद उनके घर वालों ने भी उनकी इस जीत को सेलिब्रेट किया। इसके बाद मेरी ने पश्चिम बंगाल में आयोजित ‘वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशीप’ में गोल्ड मैडल जीत, अपने राज्य का नाम ऊँचा किया। समाचार पत्र पर निबंध यहाँ पढ़े।
    2001 – सन 2001 में मेरी ने अन्तराष्ट्रीय स्तर पर अपना करियर शुरू किया। इस समय इनकी उम्र 18 साल मात्र थी।

    सबसे पहले इन्होने अमेरिका में आयोजित AIBA वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशीप, 48 kg वेट केटेगरी में हिस्सा लिया और यहाँ सिल्वर मैडल जीता। इसके बाद सन 2002 में तुर्की में आयोजित AIBA वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशीप, 45 kg वेट केटेगरी में मेरी विजयी रहीं और इन्होने गोल्ड मैडल अपने नाम किया।

    इसी साल मेरी ने हंगरी में आयोजित ‘विच कप’ में 45 वेट केटेगरी में भी गोल्ड मैडल जीता।

    2003 – सन 2003 में भारत में आयोजित ‘एशियन वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशीप’ में 46 kg वेट केटेगरी में मेरी ने गोल्ड मैडल जीता। इसके बाद नॉर्वे में आयोजित ‘वीमेन बॉक्सिंग वर्ल्ड कप’ में एक बार फिर मेरी को गोल्ड मैडल मिला।

    2005 – सन 2005 में ताइवान में आयोजित ‘एशियन वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशीप’ 46 kg वेट क्लास में मेरी को फिर से गोल्ड मैडल मिला। इसी साल रसिया में मेरी ने AIBA वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशीप भी जीती।

    2006 – सन 2006 में डेनमार्क में आयोजित ‘वीनस वीमेन बॉक्स कप’ एवं भारत में आयोजित AIBA वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशीप में मेरी ने जीत हासिल कर, गोल्ड मैडल जीता।

    2008 – एक साल का ब्रेक लेकर मेरी 2008 में फिर वापस आई और भारत में आयोजित ‘एशियन वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशीप’ में सिल्वर मैडल जीता। इसके साथ ही AIBA वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशीप चाइना में गोल्ड मैडल जीता।

    2009 – सन 2009 में वियतनाम में आयोजित ‘एशियन इंडोर गेम्स’ में मेरी ने गोल्ड मैडल जीता।

    2010 – सन 2010 कजाखस्तान में आयोजित ‘एशियन वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशीप’ में मेरी ने गोल्ड मैडल जीता, इसके साथ ही मेरी ने लगातार पाचंवी बार AIBA वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशीप में गोल्ड मैडल जीता।

    इसी साल मेरी ने एशियन गेम्स में 51 kg वेट क्लास में हिस्सा लेकर ब्रोंज मैडल जीता था। 2010 में भारत में कॉमनवेल्थ गेम्स का भी आयोजन हुआ था, यहाँ ओपनिंग सेरेमनी में विजेंदर सिंह के साथ मेरी कोम भी उपस्थित थी।

    इस गेम्स में वीमेन बॉक्सिंग गेम का आयोजन नहीं था, जिस वजह से मेरी यहाँ अपनी प्रतिभा नहीं दिखा सकीं।

    2011 – सन 2011 में चाइना में आयोजित ‘एशियन वीमेन कप’ 48 kg वेट क्लास में गोल्ड मैडल जीता।

    2012 – सन 2012 में मोंगोलिया में आयोजित ‘एशियन वीमेन बॉक्सिंग चैम्पियनशीप’ 51 kg वेट क्लास में गोल्ड मैडल जीता। इस साल लन्दन में आयोजित ओलंपिक में मेरी को बहुत सम्मान मिला, वे पहली महिला बॉक्सर थी जो ओलंपिक के लिए क्वालिफाइड हुई थी।

    यहाँ मेरी को 51 kg वेट क्लास में ब्रोंज मैडल मिला था। इसके साथ मेरी तीसरी भारतीय महिला थी, जिन्हें ओलंपिक में मैडल मिला था।

    2014 – सन 2014 में साउथ कोरिया में आयोजित एशियन गेम्स में वीमेन फ्लाईवेट (48-52kg) में मेरी गोल्ड मैडल जीता और इतिहास रच दिया।

    ~मेरी कोम पर्सनल लाइफ ~

    मेरी की मुलाकात सन 2001 में ओन्लर से दिल्ली में हुई थी, जब वे पंजाब में नेशनल गेम्स के लिए जा रही थी।

    उस समय ओन्लर दिल्ली यूनिवर्सिटी में लॉ पढ़ रहे थे। दोनों एक दुसरे से बहुत प्रभावित हुए, चार साल तक दोनों के बीच दोस्ती का रिश्ता रहा, जिसके बाद सन 2005 में दोनों ने शादी कर ली। दोनों के तीस लड़के है, जिसमें से 2 जुड़वाँ बेटों का जन्म 2007 में हुआ था, एवं एक और बेटे का जन्म 2013 में हुआ।

    ~मेरी कॉम अवार्ड्स एवं अचीवमेंट ~

    सन 2003 में अर्जुन अवार्ड मिला।
    सन 2006 पद्म श्री अवार्ड मिला।
    सन 2007 में खेल के सबसे बड़े सम्मान ‘ राजीव गाँधी खेल रत्न’ के लिए नोमिनेट किया गया।
    सन 2007 में लिम्का बुक रिकॉर्ड द्वारा पीपल ऑफ़ दी इयर का सम्मान मिला।
    सन 2008 में CNN-IBN एवं रिलायंस इंडस्ट्री द्वारा ‘रियल हॉर्स अवार्ड’ से सम्मानित किया गया
    सन 2008 पेप्सी MTV यूथ आइकॉन
    सन 2008 में AIBA द्वारा ‘मैग्निफिसेंट मैरी’ अवार्ड।
    2009 में राजीव गाँधी खेल रत्न दिया गया।
    सन 2010 में सहारा स्पोर्ट्स अवार्ड द्वारा स्पोर्ट्सवीमेन ऑफ़ दी इयर का अवार्ड दिया गया।
    सन 2013 में देश के तीसरे बड़े सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

    ~मेरी कोम फिल्म ~

    मेरी कोम के जीवन पर आधारित फिल्म “मेरी कोम” को ओमंग कुमार ने बनाया था, जिसे 5 सितम्बर 2014 में रिलीज़ किया गया था। फिल्म में मुख्य भूमिका में प्रियंका चोपड़ा थी, जिसमें उनकी अदाकारी देखने लायक थी।

     

  • Gujarati motivational story

    Gujarati motivational story

    Gujarati motivational story
    Gujarati motivational story



    *’અનોખી પરીક્ષા’*

    ‘બેટા… થોડું ખાઇને જા…! બે દિવસથી તે કાંઇ ખાધું નથી…!’ માં લાચાર શબ્દોમાં મોહનને સમજાવતી રહી.

    ‘જો મમ્મી… મેં મારી બોર્ડની પરીક્ષા પછી વેકેશનમાં માત્ર સેકેન્ડ હેન્ડ બાઇક જ માંગેલું.. અને પપ્પાએ પ્રોમિસ પણ કરેલું… આજે મારું પેપર પત્યા પછી દીદીને કહેજો કે સ્કુલની બહાર પૈસા લઇને આવે.. મારા ફ્રેન્ડનું જુનુ બાઇક આજે જ લેવાનું છે…. અને જો દીદી બહાર નહી આવે તો હું ઘરે પાછો નહી આવું…..!’ એક ગરીબ ઘરમાં મોહનની જીદ અને માંની લાચારી સામસામે ટકરાઇ રહી હતી.

    ‘બેટા.. તારા પપ્પા  તને બાઇક લઇ આપવાનાં જ હતા… પણ ગયા મહિને થયેલો એક્સિડન્ટ… અને…!’ મમ્મી કાંઇ આગળ બોલે તે પહેલા મોહન બોલ્યો, ‘એ હું કાંઇ ન જાણું… મારે બાઇક જોઇએ એટલે જોઇએ જ..!’
    અને મોહન માંને ગરીબી અને લાચારીના મધદરીયે એકલી મુકીને બહાર નીકળી ગયો.

    ધોરણ ૧૨બોર્ડની પરીક્ષાના એક સપ્તાહ પછી ભાગવદસર એક અનોખી પરીક્ષાનું આયોજન કરતાં. જો કે ભાગવદસર ગણિત વિષય ભણાવતા પરંતુ સાથે વિદ્યાર્થીઓને જીવનનું ગણિત પણ સમજાવતાં. વિવિધતાઓથી ભરેલી તેમની અનોખી પરીક્ષા દરેક વિદ્યાર્થીઓ અચૂક આપે જ.

    આ વર્ષે પરીક્ષાનો વિષય હતો.. ‘મારી પારિવારીક ભૂમિકા’

    મોહન પરીક્ષા ખંડમાં આવીને બેસી ગયો અને તેને મનમાં ગાંઠ વાળી દીધેલી કે જો બાઇક નહી લઇ આપે તો ઘરે નહી જ જાઉં.

    પેપર ક્લાસમાં વહેંચાઇ ગયું.. તેમાં દસ પ્રશ્નો હતા. તેના જવાબ લખવા માટે એક કલાકનો સમય હતો. મોહને પહેલો પ્રશ્ન વાંચ્યો અને જવાબ લખવાની શરુઆત કરી.

    *પ્રશ્ન નં – ૧ તમારા ઘરમાં તમારા પિતાશ્રી, માતાશ્રી, બહેન, ભાઇ અને તમે પોતે કેટલા કલાક કામ કરો છો તે સવિસ્તાર જણાવો ?*

    મોહને ખૂબ ઝડપથી લખવાનું શરુ કર્યુ.. પપ્પા સવારે છ વાગે રીક્ષા અને ટીફીન લઇને નીકળી પડે તો રાતે નવેક વાગે ઘરે આવે.. અને ક્યારેક રાતે પણ વરધીમાં જવું પડે એટલે દિવસના સરેરાશ પંદરેક કલાક.
    મમ્મી તો ચાર વાગે ઉઠે.. ટીફીન તૈયાર કરે.. ઘરનું કામ કરે.. બપોરે સિલાઇનું કામ કરે… અને બધા સૂઇ જાય પછી જ તે સુએ એટલે સરેરાશ રોજ.. સોળેક કલાક..
    મોટી બહેન સવારે કોલેજ જાય… સાંજે ૪ થી ૮ ચાર  કલાક નોકરી કરે.. રાત્રે મમ્મીને મદદ કરે અને અગિયાર વાગે સૂઇ જાય.. એટલે સરેરાશ.. બાર-તેર કલાક
    અને હું… છ વાગે ઉઠું… બપોરે સ્કુલેથી આવી જમીને સૂઇ જવાનું… અને રાત્રે અગિયાર વાગ્યા સુધી વાંચવાનું.. એટલે સરેરાશ દસ કલાક…
    મોહને જોયું તો ઘરમાં કામની સરાસરીમાં સૌથી છેલ્લો નંબર તેનો હતો.
    પહેલો જવાબ લખ્યા પછી તેને બીજો સવાલ વાંચ્યો.

    *પ્રશ્ન નં -૨ તમારા ઘરની મહિનાની કુલ આવક કેટલી..?*
    જવાબ :  પપ્પાની અંદાજે દસેક હજાર.. સાથે મમ્મી અને બહેન મળીને ત્રણેક હજારનો ટેકો કરે એટલે કુલ તેર હજાર થાય.

    *પ્રશ્ન નં – ૩ મોબાઇલ રીચાર્જ પ્લાન… ટીવીમાં આવતી મનપસંદ ત્રણ સિરિયલના નામ.. શહેરના એક થિયેટરનું એડ્રેસ.. હાલની લેટેસ્ટ મુવીનું એક નામ લખો.*

    આ દરેકના જવાબ સહેલા હોવાથી મોહને એક મિનિટ કરતા ઓછા સમયમાં જવાબ લખી નાખ્યાં.  

    *પ્રશ્ન નં- ૪  બટાટા અને ભીંડાની હાલની એક કિલોની કિંમત.. ઘઉં-ચોખા-તેલના એક કિલોના ભાવ..તમારા ઘરનો લોટ જ્યાં દળાય છે તે ઘંટીનું નામ-સરનામું લખો.*

    મોહનને આ સવાલનો જવાબ ન આવડ્યો. મોહનને સમજાયું કે જે ખરેખર જીવનની રોજબરોજની ખૂબ જરુરિયાતવાળી ચીજો વિશે તો તેને લેશમાત્ર જ્ઞાન નથી. મમ્મી ઘણીવાર ઘરનું કામ બતાવે તો તરત ના કહી દેતો જેનું આજે ભાન થયું કે મોબાઇલનું રીચાર્જ કે મુવી જે જીવનમાં કોઇ ઉપયોગી નથી તે વિશે ખૂબ જ્ઞાન રાખીએ છીએ પણ ઘરની જવાબદારી લેવામાં પાછીપાની કરીએ છીએ.

    *પ્રશ્ન નં – ૫ તમારા ઘરમાં તમે ભોજન બાબતે કોઇ તકરાર કરો છો ખરા..?*

    જવાબ – હા… મને બટાકા સિવાય કોઇ શાક ન ભાવે.. જો મમ્મી બીજુ કોઇ શાક બનાવે એટલે મારે ઝઘડો થાય અથવા હું ખાધા વિના ઉભો થઇ જવું…
    આટલું લખીને મોહનને યાદ આવ્યું કે બટેકાથી મમ્મીને ખૂબ ગેસ થઇ જાય અને પેટમાં પણ દુ:ખે.. પણ પોતે જીદ કરે કરે ને કરે જ.. એટલે મમ્મી પોતાના બટેકાના શાકમાં એક મોટો ચમચો અજમો નાખીને ખાય.. એકવાર તે શાક ભૂલથી મોહને ખાઇ લીધેલું તો તરત જ થૂંકી નાંખેલું… મમ્મી તું આવું ખાય છે…? બહેન પણ કહેતી કે આપણાં ઘરમાં એવી સ્થિતિ નથી કે રોજ બે જુદા જુદા શાક બને… તું નથી માનતો એટલે મમ્મી બિચારી શું કરે …?
    અને મોહન પોતાની યાદમાંથી બહાર આવ્યો અને પછીનો પ્રશ્ન વાંચ્યો.

    *પ્રશ્ન નં – ૬ તમે કરેલી છેલ્લી જીદ અને તેનું સ્વરુપ લખો.*

    જવાબ –મોહને જવાબ લખવાનું શરુ કર્યુ. ‘મારી બોર્ડની પરીક્ષા પુરી થઇ ને બીજા દિવસે મેં બાઇક માટે જીદ કરેલી.. પણ પપ્પાએ કોઇ જવાબ ન આપ્યો.. મમ્મીએ સમજાવ્યો કે ઘરમાં પૈસા નથી.. પણ હું ન માન્યો.. મેં બે દિવસથી ખાવાનું પણ બંધ કરી દીધું છે અને મેં જીદ કરી છે કે જ્યાં સુધી મને બાઇક ન લાવી આપો ત્યાં સુધી હું જમીશ નહી.. અને આજે તો ઘરે પણ પાછો નહી ફરુ તેમ કહીને જ નીકળ્યો છું. મોહને પોતાની જીદનો પ્રમાણિકપણે જવાબ લખ્યો.

    *પ્રશ્ન- ૭ તમને આપવામાં આવતી પોકેટમનીનો શો ઉપયોગ કરો છો…? તમારા ભાઇ કે બહેન તેનો શો ઉપયોગ કરે છે ?*

    જવાબ – પપ્પા દર મહિને મને સો રુપિયા આપે છે.. તેમાંથી હું મને મનગમતો પરફ્યુમ.. ગોગલ્સ.. જેવી વસ્તુઓ કે ક્યારેક મિત્રોની નાની નાની પાર્ટીઓમાં ખર્ચ કરું છું. મારી બહેનને પણ પપ્પા સો રુપિયા આપે છે.. તે નોકરી કરીને કમાય છે.. તે પોતાની કમાણી મમ્મીને આપે છે અને પોકેટમની ગલ્લામાં નાખી બચાવી રાખે છે.. તેને કોઇ જ શોખ નથી.. તે કંજુસ પણ છે.  


    *પ્રશ્ન – ૮ તમે તમારી પારિવારિક ભૂમિકા શું સમજો છો..?*

    પ્રશ્ન અટપટો અને અઘરો હતો પણ મોહને વિચારી જવાબ લખ્યો.. પરિવારમાં જોડાઇને રહેવું.. એકમેક પ્રત્યે સમજણ રાખવી.. એકમેકને મદદ કરવી.. અને પોતાની જવાબદારી નિભાવવી.

    અને આ લખતા જ મોહનને અંદરથી જ અવાજ સંભળાયો.. શું મોહન તું પોતે પોતાની પારિવારિક ભૂમિકા યોગ્ય રીતે ભજવી રહ્યો છે…?
    અને અંદરથી જ પોતાનો જવાબ સંભળાયો ‘ના’

    *પ્રશ્ન – ૯ શું તમારા પરિણામોથી તમારા માતા-પિતા ખુશ છે ? શું તે સારા પરિણામ માટે જીદ કરે કે તમને લડે છે ?*

    આ જવાબ લખતા મોહનની આંખો ભરાઇ આવી… તે હવે પોતાની પારિવારીક ભૂમિકા સમજી ગયો હતો.. તેને જવાબ લખવાની શરુઆત કરી… ‘આમ તો હું ક્યારેય મારા માતા-પિતાને સંતોષકારક પરિણામ આપી શક્યો નથી. જો કે તેમને તેની ક્યારેય જીદ પણ કરી નથી.. અને મેં સેંકડો વાર તેમને આપેલા રિઝલ્ટના પ્રોમીસ તોડયાં છે..’

    *પ્રશ્ન નં -૧૦ પારિવારિક અસરકારક ભૂમિકા ભજવવા માટે વેકેશનમાં તમે કેવી રીતે મદદરુપ થશો ?*

    જવાબ : મોહનની કલમ ચાલે તે પહેલાં તેની આંખોમાંથી આંસુની ધાર વહેવા લાગી…. આ પ્રશ્નનો જવાબ લખતા પહેલાં જ મોહનની પેન ફસડાઇ પડી અને બેંચ પર નીચે મોં ઘાલીને રડી લીધું.. મોહને ફરી પેન ઉપાડી પણ આ પ્રશ્નનો જવાબ તે લખી ન શક્યો.. અને છેલ્લો જવાબ કોરો મુકીને પેપર સબમીટ કરી દીધું.

    ગેટ પર જ દીદીને જોઇ તે તેની પાસે દોડી ગયો.

    ‘ભઇલું.. લે આ આઠ હજાર રુપીયા.. મમ્મી એ કહ્યું છે કે મોહનને કહેજે કે બાઇક લઇને ઘરે આવે.’ અને તેની દીદીએ મોહન સામે પૈસા ધર્યા.

    ‘ક્યાંથી લાવી આ પૈસા..?’ મોહને પુછ્યું.

    ‘મેં મારી નોકરીમાં એક મહિનાનો એડવાન્સ પગાર માંગ્યો તો તેમને આપ્યો.. મમ્મી પણ જ્યાં કામ કરે છે ત્યાંથી ઉછીના લાવી… અને મારી બચાવેલી પોકેટમની.. બધુ ભેગું કરીને તારા બાઇકના પૈસા કર્યા છે.’ દીદીએ જણાવતા કહ્યું.

    મોહનની નજર પૈસા પર સ્થિર થઈ અને તેની બહેન  ફરી બોલી.
    ‘ભઇલું.. તું મમ્મીને કહીને આવ્યો હતો કે જો મને પૈસા નહી આપો તો ઘરે નહી આવું…! જો હવે તારે સમજવું જોઇએ કે ઘરમાં તારી પણ કંઇક જવાબદારી છે. મને પણ ઘણા શોખ છે.. પણ આપણાં શોખ કરતા પરિવાર વધુ મહત્વનો છે. તું અમારા સૌનો લાડકો છે.. પપ્પાને પણ પગે ખૂબ તકલીફ છે છતા તારા બાઇક માટે પૈસા ભેગા કરવા… તને આપેલ પ્રોમિસ પાળવાં.. પોતાના ફ્રેક્ચરવાળો પગ હોવા છતાં કામ કર્યે જ જાય છે…તું સમજી શકે તો સારુ…! કાલે રાત્રે પપ્પા પણ પોતાનું પ્રોમિસ નહી પુરુ કરવાના કારણે દુ:ખી હતા.. પપ્પાએ એક્વાર પ્રોમિસ તોડ્યું છે તેની પાછળ તેની મજબુરી છે… બાકી તેં પણ અનેકવાર પ્રોમિસ તોડેલા જ છે ને…!’ અને દીદી મોહનના હાથમાં પૈસા મુકીને ચાલી નીકળી.

    અને ત્યાંજ તેનો ભાઇબંધ તેનું બાઇક લઇને સરસ સજાવીને આવી ગયો..’ લે.. મોહન.. હવેથી આ બાઇક તારુ.. બધા તો બાર હજારમાં માંગે છે… પણ તારા માટે જ આઠ હજાર હોં…!’

    મોહન બાઇક સામે જોઇ રહ્યો અને થોડીવાર પછી બોલ્યો, ‘તું આ બાઇક તેમને જ આપી દેજે. મારાથી પૈસાની વ્યવસ્થા નહી થઇ શકે.’

    અને તે સીધો ભાગવદસરની કેબિનમાં પહોંચ્યો..

    ‘અરે મોહન કેવું લખ્યું પેપરમાં…?’ ભાગવદસરે મોહનની સામે જોઇને કહ્યું.

    ‘ સર.. આ કોઇ પેપર નહોતું.. મારી જિંદગીનો રસ્તો હતો.. મેં એક જવાબ કોરો રાખ્યો છે.. પણ તે જવાબ હું લખીને નહી જીવીને બતાવીશ.’ અને મોહન ભાગવદસરના ચરણસ્પર્શ કરી ચાલી નીકળ્યો.

    ઘરે પહોંચતા જ મમ્મી-પપ્પા અને દીદી તેની રાહ જોઇને ઉભા હતા.
    ‘બેટા.. બાઇક ક્યાં.. ?’ મમ્મીએ પુછ્યું.

    મોહને તે પૈસા દીદીના હાથમાં આપતા કહ્યું, ‘ સોરી…મારે બાઇક નથી જોઇતું… અને પપ્પા મને રીક્ષાની ચાવી આપો… તમારે આરામ કરવાનો… હું આ વેકેશનમાં કામ કરીશ.. અને મમ્મી આજે સાંજે તને ભાવતું રીંગણ મેથીનું શાક બનાવજે.. રાત્રે પહેલી કમાણી લાવીશ એટલે સાથે જમીશું…!’

    મોહનમાં આવેલ પરિવર્તન જોઇ મમ્મી તો તેને વળગી પડી, ‘ બેટા, તું સવારે જે કહીને ગયો હતો તે વાત મેં તારા પપ્પાને કરી એટલે તે ઘરે આવી ગયેલા… મને ભલે પેટમાં દુ:ખે હું તો રાત્રે તને ભાવતું શાક જ બનાવીશ.’

    ‘ના મમ્મી.. મને હવે સમજાઇ ગયું છે કે પરિવારમાં દરેકની ભૂમિકા શું હોય છે.. રાત્રે મેથી રીંગણ જ ખાઇશ… મેં આજે પરીક્ષામાં છેલ્લો જવાબ નથી લખ્યો પણ પ્રેક્ટિકલ કરીને બતાવીશ.. અને હા મમ્મી આપણે લોટ દળાવીએ છીએ તે ઘંટીનું નામ શું અને તે ક્યાં છે..?’

    અને પાછળ જ ભાગવત સર ઘરમાં દાખલ થયા અને બોલ્યા, ‘ વાહ.. મોહન જે જવાબ નથી લખ્યાં તે તું હવે જીવીને બતાવીશ…

    ‘સર તમે અહીં…?’ મોહન ભાગવદસરને જોઇ અચંબીત થઇ ગયો.

    ‘તું મને મળીને ચાલ્યો ગયો પછી મેં તારું પેપર વાંચ્યું એટલે તારા ઘરે આવ્યો.. હું ક્યારનો’ય તમારી વાતો સાંભળતો હતો, તારામાં   આવેલા પરિવર્તનથી મારી *અનોખી પરીક્ષા* સફળ બની. તું અનોખી પરીક્ષામાં પહેલા નંબરે આવ્યો છું.’ ભાગવદસરે મોહનના માથા પર હાથ મુક્યો.

    મોહન તરત જ ભાગવદસરને પગે લાગી રીક્ષા ચલાવવા નીકળી ગયો.      

    *સ્ટેટસ*

    પરિવાર નામનો ભલે કોઇ વાર નથી
    પણ તેના વિના એકે’ય તહેવાર નથી
    નમીને ગમીને ને સમજીને સાથે રહેવું,
    આ કોઈ સ્વાર્થનો વેપાર કે વહેવાર નથી.

  • Life History Of Madhuri Dixit In Hindi

    Life History Of Madhuri Dixit In Hindi

    माधुरी दीक्षित की जीवनी- Life history of Madhuri Dixit in Hindi 

    हिंदी सिनेमा की एक अलग पहचान हैं अभिनेत्री माधुरी दीक्षित। जिन्हे आज भी दर्शक बड़े पर्दे पर देखने के लिए आतुर हैं। माधुरी दीक्षित सिर्फ एक अदाकारा ही नहीं बल्कि हिंदी सिनेमा की डांसिंग डिवा भी हैं। उन्होंने अपने हिंदी फ़िल्मी करियर में कई बेहतरीन फ़िल्में की, जिन्हे दर्शक आज भी बड़े चाव से देखतें हैं। 

    life history of madhuri dixit in hindi
    life history of madhuri dixit in hindi

    माधुरी को हिंदी सिनेमा में उनके बेहतरीन अदाकारी के लिये चार बार फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री एक बार फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री और एक स्पेशल अवार्ड से नवाजा जा चुका है। इन सभी पुरुस्कारों के अलावा उन्हे भारत सरकार् के चतुर्थ सर्वोच्च नागारिक सम्मान ” पद्मश्री ” से सम्मनित किया गया।माधुरी 2014 में UNICEF भारत की एम्बेसडर (Ambassador) भी चुनी गई|

    ~पृष्ठभूमि -^
    माधुरी दीक्षित का जन्म 15 मई 1965 को मुंबई में हुआ था। पिता शंकर दीक्षित और माता स्नेह लता दीक्षित की लाडली माधुरी को बचपन से डॉक्टर बनने की चाह थी, लेकिन वह अभिनेत्री बन गयी। माधुरी दीक्षित 2 बहन और 1 भाई है। मात्र 3 साल की आयु से माधुरी ने कथक सीखना शुरू कर दिया था।

    life history of madhuri dixit
    life history of madhuri dixit in hindi

    माधुरी ने डिवाइन चाइल्ड हाई स्कूल और मुंबई विश्वविद्यालय से microbiologist की पढाई पूरी की। माधुरी दीक्षित ने 1984 में अपनी पहली फिल्म अबोध की और उसके बाद कई सफल फिल्मों में काम किया जैसे तेज़ाब, दिल, हम आपके हैं कौन, दिल तो पागल आदि है।

    माधुरी दीक्षित ने भारतीय हिन्दी फ़िल्मो मे एक ऐसा मुकाम तय किया है जिसे आज के अभिनेत्रियाँ अपने लिए आदर्श मानती है। 80 और 90 के दशक मे इन्होने स्वयं को हिन्दी सिनेमा मे एक प्रमुख अभिनेत्री तथा सुप्रसिद्ध नृत्यांगना के रूप मे स्थापित किया। उनके लाजवाब नृत्य और स्वाभाविक अभिनय का ऐसा जादू था माधुरी पूरे देश की धड़कन बन गयी।
    ~पढ़ाई -^
    माधुरी ने अपनी शुरुआती पढ़ाई डिवाइन चाइल्ड हाई स्कूल से सम्पूर्ण की है। उसके बाद माधुरी दीक्षित ने मुंबई यूनिवर्सिटी से स्नातक की शिक्षा पूरी की।

    ~शादी -^

    life history of madhuri dixit
    life history of madhuri dixit in hindi


    17 अक्टूबर 1999 में माधुरी ने डॉ. श्रीराम माधव नेने से शादी की जोकि एक हार्ट सर्जन है जो लोस एंजेलस (Los Angeles) कैलिफ़ोर्निया (California) में रहते थे. माधुरी को दों लड़के अरिन और रयान है. शादी के बाद माधुरी डेन्वेर कोलोराडो (Denver Colorado) में करीब दस साल तक रही. माधुरी 2011 में अपने परिवार के साथ वापस मुंबई आ गई.

    माधुरी एक अच्छी डांसर है इसके चलते उन्होंने एक ऑनलाइन डांस अकादमी (Online Dance Academy), डांस विथ माधुरी संस्था भी खोली. जहा माधुरी के फैंस उनके प्रसिद्ध डांस सिख सकते है.

    माधुरी दीक्षित की आयु लगभग 49 साल होने पर भी आज भी एक्टिंग और डांस में माधुरी ने सारी नयी हेरोइन को पीछे छोड़ दिया है। माधुरी दीक्षित को कई अवार्ड से नवाजा गया है उन्हें 2008 में हिन्दी सिनेमा में सहयोग के लिए पदम् श्री भी मिला है।

    ~फ़िल्मी करियर -^
    माधुरी दीक्षित ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत साल 1984 में राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म अबोध से की थी। लेकिन यह फिल्म कुछ खास नहीं चली। माधुरी को अपने शुरुआती करियर में कई असफलताओं का मुंह देखना पड़ा।

    लेकिन उन्हें हिंदी सिनेमा में पहचना मिली फिल्म तेजाब से।

    life history of madhuri dixit
    life history of madhuri dixit in hindi

    इस फिल्म में उन्हें उनकी बेहतरीन अदाकारी के लिए फिल्मफेयर पुरुस्कार का पहला नामकंन भी मिला था। इस फिल्म का गाना एक दो तीन आज भी माधुरी दीक्षित का आइकॉनिक सांग माना जाता हैं।

    इस सफल फिल्म के बाद फिर उन्होंने कभी पीछे मुद कर देखा और हिंदी सिनेमा में बैक-टू बैक हिट फ़िल्में दी। फिल्म अभिनेता अनिल कपूर के साथ उन्होंने तकरीबन बीस फिल्मों में काम किया जिनमे से अधिकतर उनकी फ़िल्में सुपरहिट साबित हुई।


    ~1990-2002 -^
    साल 1990 में उन्होंने आमिर खान स्टारर फिल्म दिल की हैं। हर फिल्म की तरह उनकी यह फिल्म भी सुपर हिट साबित हुई। इस फिल्म में उन्होंने एक अमिर लड़की की भूमिका निभायी थी, जिसे एक गरीब लड़के से प्यार हो जाता है।

    उनके करियर को सबसे बड़ी सफलता तब मिली जब उन्होंने राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म “हम आपके हैं कौन” की।

    life history of madhuri dixit in hindi
    life history of madhuri dixit in hindi

    http://www.1clickchangelife.com/mary-kom-life-story-in-hindi/

    इस फिल्म में उन्होंने निशा की भूमिका अदा की थी। यह हिंदी सिनेमा की पहली फिल्म थी जिसने वर्ल्डवाइड सबसे  जयादा कमाई की थी।

    इस फिल्म का यह रिकॉर्ड गिनीजबुक में भी दर्ज है। इस फिल्म में उनके किरदार के लिए आलोचकों से बहुत अच्छी और सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। इस फिल्म में माधुरी के अलावा सलमान खान, मोहनीश बहल, रेणुका शाहने,अनुपम खेर, आलोक नाथ भी नजर आये थे।

    इस फिल्म की कमाई का रिकॉर्ड सात सालों तक कोई भी फिल्म नहीं तोड़ पायी, बाद में साल 2002 में सनी देओल स्टारर फिल्म गदर-एक प्रेमकथा ने इस फिल्म के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया।

    इस फिल्म के बाद तो माधुरी दीक्षित हिंदी सिनेमा की सबसे सफल अभिनेत्रीयोँ में शुमार हो चुकी थी। उसके बाद उन्होंने कई और फिल्मों में अपने बेहतरीन प्रदर्शन से दर्शकों को मनोरंजित करती रही। इसके बाद तो उन्होंने बॉक्स-ऑफिस पर कई सफलताओं के पैमाने बनाये।

    life history of madhuri dixit
    life history of madhuri dixit in hindi

    माधुरी दीक्षित ने कौन बनेगा करोडपति में जीती गे 150 लाख की धन राशि को गुजरात भूकम्प और पुणे के अनाथाश्रम में दान दे दिया। 2011 में माधुरी ने 75 अनाथ किसान बच्चों के साथ समय बिताया।

    2012 में माधुरी ने कैंसर पीड़ित बच्चों मिलने गयी और उनके साथ काफी समय भी बिताया और भी अनेक कार्य माधुरी ने समाज सेवा के लिए किये।

    माधुरी दीक्षित ने एक इंटरव्यू में बताया की उनकी माँ ने उन्हें हमेशा सिखाया है की “आप जैसे हो वैसे रहो उससे आपमें आत्मविश्वास आएगा” Must See best collection of Madhuri Dixit photos:https://www.filmnstars.com/2017/07/madhuri-dixit-best-photo-gallery.html


    शादी के बाद माधुरी ने फिल्मों से लम्बी दूरी बनाकर विदेश में जाकर बस गयी। साल 2006 में वापस आकर उन्होंने फिल्म आजा नचले से हिंदी सिनेमा में अपनी वापसी की। हालांकि इस फिल्म ने बॉक्स-ऑफिस पर कुछ अच्छा बिजनेस तो नहीं किया, लेकिन माधुरी के अभिनय को आलोचकों ने खूब सराहा।

    इसके बाद डेढ़ इश्किया और गुलाब गैंग जैसी फिल्मों में काम किया। को दर्शकों को सिनेमाघरों तक खीचनें में ज्यादा कामयाब नहीं हो सकीं।

    ~टीवी करियर -^
    इन्होने अपने टीवी करियर की शुरुआत साल 1985 में राजश्री प्रोडक्शन के शो पेइंग गेस्ट से की थी। वह इस शो में मेहमान की भूमिका में नजर आयीं थी। इसके बाद साल 2001 में वह सोनी के शो कौन बनेगा करोड़पति में नजर आयीं। दीक्षित बतौर जज डांस बेस्ड रियलिटी शो नच बलिए में भी नजर आ चुकी हैं।

    साथ ही वह डांस बेस्ड रियलिटी शो झलक दिखला जा सीजन 4, 5, 6,7 में बतौर जज नजर आ चुकी हैं।एक इंटरव्यू में माधुरी से पूछा गया की “आपकी खूबसूरती का राज़ क्या है?” इस पर माधुरी ने कहा – सूंदर दिखना इस पर निर्भर नहीं करता की आप अपने चहरे पर क्या लगते हैं, ये आपकी खाने, अच्छी आदतें, संयम और डांस अदि पर निर्भर करता है।

    मै हर दिन डांस का अभ्यास करती हूँ। सही खान खाती हूँ और exercise करती हूँ। धूम्रपान नहीं करती और हमेशा खुश रहती हूँ।

    ~प्रसिद्ध फ़िल्में -^
    तेज़ाब, अबोध, त्रिदेव, राम-लखन,प्रेम ग्रन्थ, हम आपके हैं कौन, हम तुम्हारे हैं सनम, ये रस्ते हैं प्यार के, दिल तो पागल है, देवदास, अंजाम, कानून अपना अपना,बेटा,दिल, राजा, लज्जा, खलनायक,किशन-कन्हैया, घरवाली-बाहरवाली, कोयला, मृत्युदंड, दीवाना मुझसा नहीं,सैलाब,वर्दी,देवदास, आज नचले, गुलाब गैंग, डेढ़ इश्किया Also Read:

    http://www.1clickchangelife.com/bollywood-film-making-process/

    ~माधुरी से जुडी कुछ रोचक बातें -^

    1- माधुरी दीक्षित ने कभी नहीं सोचा था कि वह एक अभिनेत्री बनेगी। वह बचपन से ही बेहद पढ़ाकू थीं, और वह एक डॉक्टर बनने की ख्वाइश रखती थीं।

    2-माधुरी सिर्फ भारतीयोँ के दिल की धड़कन ही नहीं पाकिस्तानियोँ की भी पसंदीदा हैं। जब बॉर्डर पर जंग छिड़ी थी तो एक पाकिस्तानि ने कहा था, कि हम कश्मीर छोड़ देंगे अगर तुम हमे माधुरी दीक्षित दे दो।

    3-माधुरी का शुरुआती फ़िल्मी करियर बेहद असफल रहा था, इस दौरान उनपर आलोचकों ने तंज कसते हुए कहा कि वह फिल्म जगत में केवल अपने डांस की वजह से हैं। इसके बाद उन्होंने उन्होंने आलोचकों के मुंंह पर अपनी बैक -टू-बैक हिट फिल्मों का तमाचा मारकर खुद के अभिनय की काबलियत को भी साबित कर दिया।

    4-फिल्म हम आपके हैं कौन के दौरान माधुरी ने सबसे ज्यादा फीस ली थी, तकरीबन तीन करोड़।

    5- माधुरी को डाइरेक्टर्स एक्ट्रेस भी कहा जाता हैं। ऐसा फिल्म निर्देशक सूरज बड़जात्या ने एक एक इंटरव्यू के दौरान कहा था, की एक निर्देशक का करियर तब तक पूरा नहीं होता जब तक वो  माधुरी दीक्षित के साथ काम ना करे।

    6-माधुरी दीक्षित हिंदी सिनेमा की ऐसी अभिनेत्री हैं जिन्हे 13 बार फिल्मफेयर पुरूस्कार का नामंकन मिला, जिनमे से चार वो जीत चुकीं हैं।

    7-माधुरी दीक्षित हिंदी सिनेमा इकलौती अभिनेत्री हैं, जिन्हे पंडित बिरजू महाराज द्वारा फिल्म देवदास के गाने के लिए कोरियोग्राफ किया गया।

    life history of madhuri dixit in hindi
    life history of madhuri dixit in hindi

    8- फिल्म साजन के वक्त माधुरी दीक्षित फिल्म अभिनेता संजय दत्त के बेहद करीब आ गयी थी। लेकिन उनका यह रिश्ता कुछ ही समय चल सका, और बाद में दोनों अलग हो गए।

    9-माधुरी दीक्षित कथक नृतय में पूर्ण पारंगत हैं। उन्होंने आठ साल तक कथक की पूर्ण शिक्षा ली है।

    life history of madhuri dixit in hindi
    life history of madhuri dixit in hindi

    10- माधुरी के अभिनय और हुस्न के कायल उनके फैन पूरी दुनिया में हैं। उन्ही में से एक फैन जमशेदपुर का है, जिसने एक कैलेंडर लांच किया, जिसमे वर्ष की शुरुआत माधुरी के जन्मदिन से होती हैं। इतना ही नहीं उसने भारत सरकार से दरख्वास्त की हैं, की माधुरी के जन्मदिन दिन पब्लिक हॉलिडे घोषित किया जाये।

    Also Read:

    http://www.1clickchangelife.com/bollywood-lyrics-writing-tips


    Please note :-

    अगर आपको Life history of Madhuri Dixit in Hindi language अच्छी लगे तो जरुर हमें WhatsApp status और facebook पर share कीजिये. E-MAIL Subscription करे और पायें  interesting and more new article. आपके ईमेल पर.

  • Walt Disney success facts  hindi

    Walt Disney success facts hindi

    Walt Disney

    एक ऐसा अविस्मर्णीय नाम जो आज भी दुनिया के बच्चो की आँखों में कल्पना की दुनिया को साकार कर देने में अग्रेसर है|Walt Disney एक  अमेरिकन फिल्म निर्देशक, निर्माता और animator (कार्टून बनाने वाले दिग्दर्शक) थे.

    walt disney का जीवन कल्पना, सर्जनात्मकता (creativity), विश्वास और आशावाद से प्रेरित था.

    Walt Disney success facts hindi इस आर्टिकल में हम उनके जीवन की संक्षिप्त कहानी और उसके success facts के बारे में पढ़ते है|

    Walt Disney success facts hindi

    Walt Disney success facts hindi
    Walt Disney

    वाल्ट डिज्नी :- 

    Walt Disney  (वाल्ट डिज्नी) का जन्म 5 सितम्बर 1901 को शिकागो में हुआ था। वो पांच भाई बहन थे। वाल्ट डिज्नी को बचपन से ही चित्रकला का बहुत शौक था। उन्होंने 7 वर्ष की आयु में ही अपना पहला चित्र अपने पडौसी को बेचा था।

    स्कूल के दौरान उन्होंने चित्रकला और फोटोग्राफी सीखी और एक पत्र के सम्पादक भी रहे। उन्होंने अकैडमी आफ फाइन आर्ट्स के रात्रि स्कूल में दाखिला ले लिया। स्नातक की उपाधि पाने के बाद वो सेना में जाना चाहते थे लेकिन कम उम्र की वजह से नही जा सके।

    इसके बाद वाल्ट डिज्नी रेडक्रॉस में शामिल हो गये और एम्बुलेंस चलाने लगे। कहते है कि उन्होंने एम्बुलेंस को रंग-बिरंगे कार्टूनों से सजा रखा था।

    कानवास सिटी लौटने के बाद उन्होंने विज्ञापनों के लिए कार्टून बनाना शूरू कर दिया। 1920 में वो कार्टून एनिमेटर बन गये। उन्होंने कड़ी मेहनत से ऐसी प्रक्रिया तैयार कर ली जिससे लाइव एक्शन और एनीमेशन का खुबसुरत मेल था।

    WALT DISNEY का जीवन  संघर्ष

    walt disney की कामयाबी का सफ़र कभी भी आसान नहीं रहा और इस दौरान उन्हें कई कठिनाईयों और असफलताओ का सामना करना पड़ा.

    Walt disney प्रथम विश्वयुद्ध से जब स्वयं सेवक की सेवा करके लौटे तो अपने भविष्य के बारे में सोचने के लिए उनके पास काफी समय था. वह कार्टून मोशन pictures बनाना चाहते थे, 1920 में उन्होंने केवल 19 साल की उम्र में अपनी कंपनी बनाई.

    वह बचपन से ही जीवो के कार्टून बनाया करते थे. इसी समय उनके पास किराया चुकाने के पैसे नहीं थे और कई बार उन्हें बिना खाने के रहना पड़ता था, वह एक भी कार्टून बेचने में कामयाब ना हो पाए.

    kansas सिटी में अपनी कार्टून सीरीज के बुरी तरह असफल हो जाने के कारण वह कंगाल हो गए.

    एक बार उन्हें एक समाचार संवाददाता ने यह कहकर निकाल दिया की वह सुस्त है और उनमे कल्पनात्मक और सर्जनात्मक विचारो की कमी है.

    वह कई बार दिवालिये हुए, वह हॉलीवुड एक्टर भी बनना चाहते थे पर ऐसा ना हो पाया. तिन साल बाद उन्होंने हॉलीवुड के लिए kansas सिटी को छोड़ दिया ताकि वह अपने बचपन के सपने को पूरा कर सके. बाद में उन्होंने एक स्टूडियो सेटअप किया.

    कुछ समय बाद छोटी एनीमेशन ‘alice in cartoonland’ और ‘oswald the rabbit’ के द्वारा कुछ कामयाबी हाथ लगी, लेकिन ये ज्यादा दिनों तक कायम ना रह सकी. वाल्ट को सफलता अपने पहले पात्र मिक्की माउस से मिली.

    Walt Disney success facts hindi
    Walt Disney’s dream character



    कुछ वर्ष बाद वाल्ट डिज्नी अपनी ड्राइंग सामग्री और एक सम्पूर्ण एनीमेशन फिल्म में साथ हॉलीवुड आ पहुचे।

    तब तक वे अपनी एक कर्मचारी लिलियन से विवाह कर चुके थे और उनकी जुड़वाँ पत्निया थी। 1928 में वो मिक्की माउस पात्र के साथ सामने आये।

    उन्होंने “Plane Crazy ” नामक पहला मूक कार्टून बनाया। फिल्मो में उस समय तक आवाज की तकनीक विकसित नही हुयी थी।

    “स्टीम बिली ” में उन्होंने मिक्की माउस को एक स्टार की तरह पेश किया। 18 नवबर 1928 को न्यूयार्क में यह कार्टून दिखाया गया।

    वाल्ट डिज्नी वाल्ट एक स्वप्नदर्शी अन्वेषक थे। वो अपने बेहतरीन एनीमेशन फिल्मो के लिए जुटे रहे।

    सिली सिफ्नीज के दौरान टैक्नीकलर एनीमेशन सामने आया। 1932 में “Flowers and Trees ” के लिए उन्होंने बत्तीस में से पहला निजी एकादमी पुरुस्कार जीता।

    21 सितम्बर 1933 को उनकी पहली लम्बी एनीमेशन फिल्म “Snow White and Seven Dwarfs ” लोस एंजेल्स के “कैरेथे सर्किल थिएटर ” में दिखाई गयी।

    फिल्म काफी महंगी थी परन्तु इतनी लोकप्रिय हुयी अपने व्यय से कही ज्यादा धनोपार्जन किया।

    व अब भी “Motion फिल्म Industry” की सबसे बड़ी फिल्म मानी जाती है।

    अगले पांच सालो में “पिनोकियो ” “फंतसिया” “डम्बो” और “बाम्बी ” जैसी सफल फिल्मे बनाई।

    वाल्ट डिज्नी वाल्ट डिज्नी ने इन फिल्मो के अलावा टीवी के लिए भी कई सफल पारिवारिक शो तैयार किये। 50 के दशक में “Mickey Mouse Club ” और “जोरो ” काफी लोकप्रिय रहे।

    WALT DISNEY की सपनो की दुनिया  DISNEYLAND की कल्पना 

    Walt Disney success facts hindi
    Walt Disney’s dreamland

    वाल्ट ने असफलताओ से कभी हार नहीं मानी. उन्होंने कई बिजनेस शुरू किये लेकिन सभी असफल हो गए और उसका परिणाम हुआ दिवालियापन.

    वह बड़ी कामयाबी हासिल करना चाहते थे इसलिए अपने सृजनात्मक विचारो का प्रयोग करना उन्होंने नहीं छोड़ा.

    1940 में उन्होंने एक मनोरंजन पार्क बनाने का विचार विकसित किया जहा पार्क के कर्मचारी अपने बच्चो और परिवार के साथ समय बिता सके.

    children fairyland की अपनी यात्रा के दौरान कईयों ने इस विचार में योगदान दिया. उन्होंने इस विचार की रूपरेखा दुसरो के सामने प्रस्तुत की. और इसे बनाने में दिन रात एक कर दिए.

    1955 में एक लाइव टीवी कार्यकर्म के दौरान उन्होंने अपने नए बनाये amusement park यानि dysneyland को इस आशा के साथ प्रस्तुत किया की यह लोगो के लिए आनंद और प्रेरणा का स्त्रोत बन सके.

    लोगो के लिए खुला यह सबसे लोकप्रिय पार्क था जो की walt dysney की कल्पना और विचार का परिणाम था. वह यही नहीं रुके उन्होंने water parks, motion pictures और resorts भी बनाये.

    वाल्ट dysney की असफलताओ की कहानी बहुत लम्बी है, ऐसा माना  जाता है की वो 300 से अधिक बार असफल हुए लेकिन उन्होंने अपनी असफलताओ से हार न मानते हुए एक अलग ही इतिहास लिख दिया.

    उनकी “वाल्ट डिज्नी कम्पनी” का कारोबार आज 35 अरब अमेरिका डॉलर के बराबर है.

    उनका कहना था की उनके जीवन की कठिनाइयों ने उन्हें मजबूती प्रदान की और अपने जीवन की कड़ी प्रतियोगिता के ऊपर रहे. अपने सर्जनात्मक (creative) विचारो के द्वारा उन्होने एक ऐसे पार्क को बना दिया जो आनंद का प्रतीक बन गया.


    वाल्ट डिज्नी ने अपनी कल्पना से विश्व को आश्चर्य में डाल दिय। उन्होंने पुरी दुनिया से 950 से भी अधिक पुरुस्कार एवं सम्मान प्राप्त किये। उन्हें सात अकादमी और सात एमी पुरूस्कार प्राप्त हुए।

    अनेक जाने माने विश्वविध्यालय ने उन्हें मांनद उपाधिया प्रदान की। 1955 में उन्होंने 17 मिलियन के निवेश से “DisneyLand” तैयार किया। 1980 तक 250 मिलियन लोग वहा जा चुके थे। पुरी

    दुनिया की गणमान्य हस्तिया वहा जाकर मनोरंजन करने का सौभाग्य पा चुकी है। वाल्ट सही मायनों में कल्पना के जादूगर थे। 15 दिसम्बर 1966 को वाल्ट डिज्नी का निधन हो गया।

     http://www.1clickchangelife.com/mary-kom-life-story-in-hindi/

    Top Amazing Facts About Walt Disney(Walt Disney success facts in hindi)

    Walt Disney success facts hindi
    Walt Disney and his dream

    1. सेना में शामिल होने की उम्मीद में 16 साल की उम्र में डिज्नी हाईस्कूल से बाहर हो गये। उन्हें पढाई में कमजोर होने की वजह से  खारिज कर दिया गया था, लेकिन फ्रांस में रेड क्रॉस के साथ एम्बुलेंस ड्राइवर के रूप में नौकरी पाने में सक्षम थे ।
    1. डिज़नी के पास एक क्रांतिकारी थीम पार्क खोलने के बड़े सपने थे, एक सहयोगी को बताया कि वह “दुनिया में कुछ और नहीं” देखना चाहता था। उन्होंने डिज्नीलैंड के साथ उस सपने को हासिल किया और, उनकी मृत्यु के बाद, डिज्नी वर्ल्ड।
    1. डिज्नी फिल्में पिनाकोचियो से द जंगल बुक तक, उनकी अनुपस्थित मां के लिए प्रसिद्ध हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि यह प्रवृत्ति डिज्नी की  अपराधभावना और अपनी मां की मौत पर पीड़ा का परिणाम था। स्नो व्हाइट की सफलता के बाद, डिज़नी ने अपने माता-पिता के लिए एक नया घर खरीदा। एक टूटी हुई हीटिंग सिस्टम के परिणामस्वरूप कार्बन मोनोऑक्साइड विषाक्तता से उनकी मां की मृत्यु हुई।
    1. डिज्नी एक ट्रेन के बड़े दीवाने थे । उसका यह आकर्षण एक बच्चे के रूप में शुरू हुआ, जब वह अपने घर के पास से गुजरने वाली ट्रेनों को देखते रहते । उसके  चाचा, एक ट्रेन कंडक्टर, थे । बाद में, एक वयस्क के रूप में, डिज़नी ने अपने घर के पिछवाड़े में एक लघु भाप रेल मार्ग बनाया। अपनी बेटियों को जो खुशी मिली वह देखकर, वह डिज़नीलैंड में एक मोनोरेल को शामिल करने के लिए दृढ़ हो गये|
    1. मिकी माउस मूल रूप से मोर्टिमर माउस नामित किया गया था, लेकिन डिज्नी की पत्नी ने कहा कि मोर्टिमर नाम ठीक नही था|  इसके बाद मोर्टिमर नाम बाद के एपिसोड में मिकी के प्रतिद्वंद्वी माउस को दिया गया था।

    6.1 1928 से  (मिकी माउस का जन्म) 1947 तक , डिज्नी ने खुद मिकी की आवाज निकली थी ।

    1. डिज़नी ने अमेरिकी सैनिकों के लिए कस्टम कार्टून इन्सिग्निया भी बनाया, जिसका उपयोग मनोबल को बढ़ावा देने के लिए किया गया था।

    8.डिज़नी को किसी और के मुकाबले सबसे अधिक अकादमी पुरस्कार और नामांकन मिला है। 1932 और 1969 के बीच, उन्होंने 22 अकादमी पुरस्कार जीते, और लियोनार्डो डीकैप्रियो के घावों में नमक रगड़ने के बाद उसे  59 बार नामांकित किया गया।

    1. 1966  में फेफड़ों के कैंसर से उनकी मृत्यु से पहले आखिरी फिल्म डिज्नी की व्यक्तिगत रूप से द जंगल बुक थी।
    1. जब डिज्नी की मृत्यु हो गई, तो 25 प्रतिशत उसकी संपत्ति calarts गई, जिससे निजी विश्वविद्यालय ने अपना परिसर बनाया|     आपको ये आर्टिकल अच्छा लगा हो तो आपके दोस्तों के साथ अवश्य share करना ना भूले Also Read:http://www.1clickchangelife.com/bollywood-film-making-process
Eco-Friendly Impact Calculator

Eco-Friendly Impact Calculator