Motivational story in hindi about life part-4

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Inspirational short stories about life in hindi for success

 Motivational story in hindi about life

 inspiring hindi Story -1

सुनील करीब 18 साल का एक लड़का था और मुंबई की एक सोसाइटी में रहता था।

सुनील के पिता का छोटा कारोबार था। जिससे वह अपना गुजारा करते थे।

सुनील वैसे तो देखा जाए तो बहुत भला लड़का था लेकिन उसमें एक बुरी आदत घर कर गई थी और वह आदत थी फिजूलखर्ची की।

सुनील बार-बार अपने पिता से पैसे मांगा करता और बाद में पैसे मौज शौक और फिल्में देखने में उड़ा देता।

एक बार पिता ने सुनील को कहा, बेटा तुझे नहीं लगता कि अब तू बड़ा हो गया है और तुझे अपनी जिम्मेदारियों का अच्छी तरह से एहसास होना चाहिए।

बार-बार तुम मुझसे पैसे मांगते रहता है और जहां जी में आए वहां उड़ा देता है क्या यह ठीक है?

ऐसा सुनकर सुनील बेफिक्र होकर बोला, पिताजी आप भी ना

मैं कहां आपके पास से हजारों रुपए लेता हूं।

थोड़े से पैसों के लिए आप मुझे इतना बड़ा ज्ञान दे रहे हैं?! इतने पैसे तो मैं कभी भी आपको वापस कर सकता हूं। सुनील नाराज हो गया।

सुनील की बात सुन के पिताजी को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन उसको पता लग गया था कि अब डांट फटकार से कुछ बात

बनेगी नही। पिताजी ने कहा यह तो तूने बहुत अच्छी बात कही चले ऐसा कर तू मुझे हर रोज का 1 ₹ ला कर दे दिया कर।

सुनील खुश हो गया और अपने आप को विजेता मानकर वहां से चल दिया।

अगले दिन सुनील जब पिताजी के सामने आया तो उसको देखते ही पिता जी बोले बेटा याद है ना मेरा 1 ₹?

पिता की बात सुनकर सुनील जरा चमक गया फिर संभलते हुए जल्दी से अपनी दादी मां से 1₹ लेकर वापस आया।

ये लो पिताजी आपका एक रुपया। इतना कहते हुए उसने 1₹ पिताजी को दे दिया।

उसे लेते ही पिताजी ने सिक्का जलती हुई भट्ठी में डाल दिया।

अरे पिताजी आपने ये  क्या किया और क्यों किया?

सुनील हैरान रह गया।

पिताजी मुस्कुरा कर बोले , मैं चाहे जो भी करूं तुझे इससे क्या मतलब?

सुनील ने ज्यादा दलील नहीं की और बिना कुछ कहे वहां से चला गया।

अब अगले दिन फिर से सुनील के पिता ने उससे 1₹  मांगा तो इस बार सुनील ने अपनी मां से पैसा मांग कर दे दिया।

कई दिनों तक ऐसे ही होता रहा सुनील रोज अपने कोई दोस्त, जान पहचान वाले, सगे संबंधी से पैसे ले लेता और पिताजी को दे देता और पिताजी सिक्के को बड़े आराम से भट्ठी के हवाले कर देते।

अब रोज की आदत से तंग लोग सुनील को पैसे देने से कतरा ने लगे।

सुनील को अब फिक्र होने लगी पिताजी को वह क्या मुंह दिखाएगा।

धीरे-धीरे समय बीतता गया सुनील को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि करे तो क्या करें? सिर्फ ₹1 ना दे पानी की शर्मिंदगी का अहसास वह झेलना नहीं चाहता था। तभी उसे एक मजदूर दिखा

जो किसी मुसाफिर को हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शे से लेकर कहीं जा रहा था।

सुनील ने उसे कहा भैया कृपया आप मुझे थोड़ी देर के लिए यह रिक्शा खींचने दोगे? उसके बदले में मैं तुमसे बस फक्त 1 ₹ लूंगा।

थके हुए रिक्शा वाले ने जल्दी से हां कह दी।

अब सुनील रिक्शा खींचने लगा लेकिन यह काम उसने जितना सोचा था इतना आसान नहीं था।

थोड़ी देर में उनकी हथेलियों में छाले पड़ गए, हाथ पांव फूल गए। जैसे तैसे करके उसने अपना काम पूरा किया और बदले में जिंदगी में अपनी कमाई का 1₹ कमाया।

आज पिताजी के पास पहुंचते वक्त उसके चेहरे पर अलग ही भाव थे। पिताजी के पास पहुंच कर उसने बड़े गर्व से 1₹ पिताजी के हाथ में दिया।

हर रोज की तरह पिताजी ने रुपया लेते ही उसे भट्टी में फेंकने के लिए जैसे ही अपना हाथ बढ़ाया

सुनील चिल्लाया, आप ऐसा नहीं कर सकते आपको पता है यह मेरे पसीने की कमाई है।

फिर सुनील ने पूरी घटना सुनाई।

पिताजी आगे बढ़े और सुनील को अपने गले से लगाया।

अब बात समझ में आई बेटा इतने दिनों से मैं सिक्के को जब फेंक रहा था तब तूने मुझे एक बार भी नहीं रोका।

लेकिन आज जब तूने अपनी मेहनत की कमाई को आदमी जाते देखा तो तुझ से बर्दाश्त नहीं हुआ ठीक वैसे ही जब तू मेरी मेहनत की कमाई को फिजूल खर्चे में उड़ाता था तो मुझे इतनी ही तकलीफ होती थी।

इसलिए पैसे की कीमत समझ बेटा कभी भी पैसे बर्बाद नहीं करनी चाहिए चाहे वह तुम्हारे हो या किसी और के।

अब सुनील को पिता की बात समझ में आ चुकी थी उसने तुरंत ही पिता से अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी।

आज उसे ₹1 की कीमत समझ आ चुकी थी और उसने मन ही मन में संकल्प कर लिया कि अब वह कभी भी पैसे की बर्बादी नहीं करेगा।

Motivational story in hindi for success-part 1

 

Motivational story in hindi about life

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सरिता परबतो  की कठिन व लम्बी सफर के बाद तराई में पहुंची। उसके दोनों ही किनारों पर गोलाकार, अण्डाकार व बिना किसी निश्चित आकार के कई पत्थरों का ढेर सा लगा हुआ था।

वह पर दो पत्थरों के बीच आपस में परिचय बढ़ने लगा।

दोनों एक दूसरे से अपने मन की बातें कहने-सुनने लगे।

 

उनमेंसे एक पत्थर एकदम गोल-मटोल, चिकना व अत्यंत आकर्षक था जबकि दूसरा पत्थर बिना किसी निश्चित आकार का अनाकर्षक था।

 

एक बार इनमें से बेडौल, खुरदरे पत्थर ने चिकने पत्थर से पूछा, ‘‘हम दोनों ही दूर ऊंचे पर्वतों से बहकर आए हैं फिर तुम  इतने गोल-मटोल, चिकने व आकर्षक क्यों हो जबकि मैं नहीं?’’

 

यह सुनकर चिकना पत्थर बोला, “पता है शुरुआत में मैं भी बिलकुल तुम्हारी तरह ही था लेकिन उसके बाद मैं निरंतर कई सालों तक बहता और लगातार टूटता व घिसता रहा हूं…

ना जाने मैंने कितने तूफानों को झेला है… कितनी ही बार नदी के तेज थपेड़ों ने मुझे चट्टानों पर पटका है…तो कभी अपनी धार से मेरे शरीर को  काटा है… तब जाकर मैंने ये रूप पाया है।

 

तुझे पता है? मेरे पास हमेंशा ये विकल्प था कि मैं इन कठनाइयों से बच जाऊं और आराम से एक किनारे पड़ा रहूँ…पर क्या ऐसे जीना भी कोई जीना है?

नहीं, मेरी नज़रों में तो ये मौत से भी बदतर है!

 

तु भी अपने इस रूप से निराश मत हो… तुझे अभी और संघर्ष करना है और निरंतर संघर्ष करते रहा तो एक दिन तु मुझसे भी अधिक सुंदर, गोल-मटोल, चिकने व आकर्षक बन जाएगा।

 

क्यो स्वीकारे उस रूप को जो हमारे अनुरूप ना हो… तुम आज वही हो जो मैं कल था…. कल तुम वही होगे जो मैं आज हूँ… या शायद उससे भी बेहतर!”, चिकने पत्थर ने अपनी बात पूरी की।

 

संघर्ष में इतनी ताकत होती है कि वो इंसान के जीवन को बदल कर रख देता है।

आज आप चाहे कितनी ही विषम परिस्थति में क्यों न हों… संघर्ष करना मत छोड़िये…. अपने प्रयास बंद मत करिए. आपको बहुत बार लगेगा कि आपके प्रयत्नों का कोई फल नहीं मिल रहा लेकिन फिर भी प्रयत्न करना मत छोडिये।

और जब आप ऐसा करेंगे तो दुनिया की कोई ताकत नहीं जो आपको सफल होने से रोक पाएगी।

Inspirational short stories about life in hindi-part 2

Motivational story in hindi about life

 Motivational Story for success-3

 

आदरणीय गुरुजी,

 

मैं श्याम  हूँ, आपका पुराना छात्र. शायद आपको मेरा नाम भी याद ना हो, कोई बात नहीं, हम जैसों को कोई क्या याद रखेगा|

मुझे आज आपसे कुछ कहना है सो ये चिट्ठी डाक बाबु से लिखवा रहा हूँ|

 

गुरुजी जब   मैं पांच साल का था जब मेरे पिताजी ने आपकी शाला में मेरा दाखिला कराया था.

उनका कहना था कि सरकारी स्कूल जाऊँगा तो पढना-लिखना सीख जाऊँगा और बड़ा होकर मुझे उनकी तरह मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी,

दो वक़्त की रोटी के लिए तपते शरीर में भी दिन-रात काम नहीं करना पड़ेगा…

अगर मैं पढ़-लिख जाऊँगा तो इतना कमा पाऊंगा कि मेरे बच्चे कभी भूखे पेट नहीं सोयेंगे!

 

मेरे पिता ने कुछ ज्यादा तो नहीं सोचा था गुरु जी…कोई गाडी-बंगले का सपना तो नहीं देखा था

वो तो बस इतना चाहते थे कि उनका बेटा पढ़ लिख कर बस इतना कमा ले कि अपना और अपने परिवार का पेट भर सके और उसे उस दरिद्रता का सामना ना करना पड़े जो उन्होंने आजीवन झेली …!

 

लेकिन पता है मास्टर जी मैंने उनका सपना तोड़ दिया, आज मैं भी उनकी तरह मजदूरी करता हूँ,

मेरे भी बच्चे कई-कई दिन बिना खाए सो जाते हैं… मैं भी गरीब हूँ….अपने पिता से भी ज्यादा !

 

शायद आप सोच रहे हों कि मैं ये सब आपको क्यों बता रहा हूँ ?

 

क्योंकि आज मैं जो कुछ भी हूँ उसके लिए आप जिम्मेदार हैं !

 

मैं स्कूल आता था, वहां आना मुझे अच्छा लगता था, सोचता था खूब मन लगा कर पढूंगा,

क्योंकि कहीं न कहीं ये बात मेरे मन में बैठ गयी थी कि पढ़ लिख लिया तो जीवन संवर जाएगा…इसलिए मैं पढना चाहता था…लेकिन जब मैं स्कूल जाता तो वहां पढाई ही नहीं होती.

 

आप और अन्य अध्यापक कई-कई दिन तो आते ही नहीं…आते भी तो बस अपनी हाजिरी लगा कर गायब हो जाते…या यूँही बैठ कर समय बिताते…..

कभी-कभी हम हिम्मत करके पूछ ही लेते कि क्या हुआ गुरु जी आप इतने दिन से क्यों नहीं आये तो आप कहते कुछ ज़रूरी काम था!!!

 

आज मैं आपसे पूछता हूँ, क्या आपका वो काम हम गरीब बच्चों की शिक्षा से भी ज़रूरी था?

 

आपने हमे क्यों नहीं पढाया गुरुजी…क्यों आपसे पढने वाला मजदूर का बेटा एक मजदूर ही रह गया?

 

क्यों आप पढ़े-लिखे लोगों ने मुझ अनपढ़ को अनपढ़ ही बनाए रखा ?

 

क्या आज आप मुझे वो शिक्षा दे सकते हैं जिसका मैं अधिकारी था?

 

क्या आज आप मेरा वो बचपन…वो समय लौटा सकते हैं ?

 

नहीं लौटा सकते न ! तो छीना क्यों ?

 

कहीं सुना था कि गुरु का स्थान माता-पिता से भी ऊँचा होता है, क्योंकि माता-पिता तो बस जन्म देते हैं पर गुरु तो जीना सिखाता है!

 

आपसे हाथ जोड़ कर निवेदन है, बच्चों को जीना सिखाइए…उनके पास आपके अलावा और कोई उम्मीद नहीं है …उस उम्मीद को मत तोड़िये…

आपके हाथ में सैकड़ों बच्चों का भविष्य है उसे अन्धकार में मत डूबोइए…पढ़ाइये…रोज पढ़ाइये… बस इतना ही कहना चाहता हूँ!

 

क्षमा कीजियेगा !

श्याम।

 

This post is for those teachers, Who thinks teaching is their job. But it’s not,

Teaching is their responsibility towards children’s and towards our nation.

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inspiring stories in hindi for success-part 3



कमाल अरबी नस्ल का एक शानदार घोड़ा था। वह अभी एक साल का ही था और रोज अपने पिता – “राजा” के साथ ट्रैक पर जाता था।



राजा घोड़ों की बाधा दौड़ का चैंपियन था और कई सालों से वह अपने मालिक को सर्वश्रेष्ठ घुड़सवार का खिताब दिला रहा था।

 

एक दिन जब राजा ने कमाल को ट्रैक के किनारे उदास खड़े देखा तो बोला, ” क्या हुआ बेटा तुम इस तरह उदास क्यों खड़े हो?”

 

“कुछ नहीं पिताजी…आज मैंने आपकी तरह उस पहली बाधा को कूदने का प्रयास किया लेकिन मैं मुंह के बल गिर पड़ा…मैं कभी आपकी तरह काबिल नहीं बन पाऊंगा…”

 

राजा कमाल की बात समझ गया। अगले दिन सुबह-सुबह वह कमाल को लेकर ट्रैक पर आया और एक लकड़ी के लट्ठ की तरफ इशारा करते हुए बोला-

” चलो कमाल, ज़रा उसे लट्ठ के ऊपर से कूद कर तो दिखाओ।”

 

कमाल हंसते हुए बोला, “क्या पिताजी, वो तो ज़मीन पे पड़ा है…उसे कूदने में क्या रखा है…मैं तो उन बाधाओं को कूदना चाहता हूँ जिन्हें आप कूदते हैं।”

 

“मैं जैसा कहता हूँ करो।”, राजा ने लगभग डपटते हुए कहा।

 

अगले ही क्षण कमाल लकड़ी के लट्ठ की और दौड़ा और उसे कूद कर पार कर गया।

 

“शाबाश! ऐसे ही बार-बार कूद कर दिखाओ!”, राजा उसका उत्साह बढाता रहा।

 

अगले दिन कमाल  उत्साहित था कि शायद आज उसे बड़ी बाधाओं को कूदने का मौका मिले पर राजा ने फिर उसी लट्ठ को कूदने का निर्देश दिया।

 

करीब एक हफ्ते ऐसे ही चलता रहा फिर उसके बाद राजा ने कमाल से थोड़े और बड़े लट्ठ कूदने की प्रैक्टिस कराई।

 

इस तरह हर हफ्ते थोड़ा-थोड़ा कर के कमाल के कूदने की क्षमता बढती गयी और एक दिन वो भी आ गया जब राजा उसे ट्रैक पर ले गया।

 

महीनो बाद आज एक बार फिर कमाल उसी बाधा के सामने खड़ा था जिस पर पिछली बार वह मुंह के बल गिर पड़ा था… कमाल ने दौड़ना शुरू किया…

उसके टापों की आवाज़ साफ़ सुनी जा सकती थी… १…२…३….जम्प….और कमाल बाधा के उस पार था।

 

आज कमाल की ख़ुशी का ठिकाना न था…आज उसे अन्दर से विश्वास हो गया कि एक दिन वो भी अपने पिता की तरह चैंपियन घोड़ा बन सकता है और इस विश्वास के बलबूते आगे चल कर कमालभी एक कमाल का चैंपियन घोड़ा बना।

 

दोस्तों, बहुत से लोग सिर्फ इसलिए goals achieve नहीं कर पाते क्योंकि वो एक बड़े challenge या obstacle को छोटे-छोटे challenges में divide नहीं कर पाते।

इसलिए अगर आप भी अपनी life में एक champion बनना चाहते हैं…

एक बड़ा लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं तो systematically उसे पाने के लिए आगे बढिए…

पहले छोटी-छोटी बाधाओं को पार करिए और ultimately उस बड़े goal को achieve कर अपना जीवन सफल बनाइये।

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