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    Motivational stories in hindi for success part-7

    Motivational hindi Story-1 अंधा घोड़ा

     

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    शहर के नज़दीक बने एक फॉर्म हाउस में दो घोड़े रहते थे। दूर से देखने पर वो दोनों बिल्कुल ठीक दिखते थे, पर पास जाने पर पता चलता था कि उनमे से एक घोड़ा अँधा है।

     

    पर अंधे होने के बावजूद फॉर्म के मालिक ने उसे वहां से निकाला नहीं था। बल्कि उसे और भी अधिक सुरक्षा और आराम के साथ रखा था।

    अगर कोई थोडा और ध्यान देता तो उसे ये भी पता चलता कि मालिक ने दूसरे घोड़े के गले में एक घंटी बाँध रखी थी, जिसकी आवाज़ सुनकर अँधा घोड़ा उसके पास पहुंच जाता और उसके पीछे-पीछे बाड़े में घूमता।

     

    घंटी वाला घोड़ा भी अपने अंधे मित्र की परेशानी समझता था, वह बीच-बीच में पीछे मुड़कर देखता और इस बात को सुनिश्चित करता कि कहीं उसका साथी रास्ते से भटक ना जाए।

     

    वह ये भी सुनिश्चित करता कि उसका मित्र सुरक्षित; वापस अपने स्थान पर पहुच जाए, और उसके बाद ही वो अपनी जगह की ओर बढ़ता था।

    Moral- दोस्तों! बाड़े के मालिक की तरह ही भगवान हमें बस इसलिए नहीं छोड़ देते कि हमारे अन्दर कोई दोष या कमियां हैं। वो हमारा ख्याल रखते हैं, और हमें जब भी ज़रुरत होती है तो किसी ना किसी को हमारी मदद के लिए भेज देते हैं।

     

    कभी-कभी हम वो अंधे घोड़े होते हैं, जो भगवान द्वारा बांधी गयी घंटी की मदद से अपनी परेशानियों से पार पाते हैं। तो कभी हम अपने गले में बंधी घंटी द्वारा दूसरों को रास्ता दिखाने के काम आते हैं॥

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    धर्म का मर्म

    एक साधु शिष्यों के साथ कुम्भ के मेले में भ्रमण कर रहे थे। एक स्थान पर उनने एक बाबा को माला फेरते देखा।

    लेकिन वह बाबा माला फेरते- फेरते बार- बार आँखें खोलकर देख लेते कि लोगों ने कितना दान दिया है। साधु हँसे व आगे बढ़ गए।

    आगे एक पंडित जी भागवत कह रहे थे, पर उनका चेहरा यंत्रवत था। शब्द भी भावों से कोई संगति नहीं खा रहे थे, चेलों की जमात बैठी थी। उन्हें देखकर भी साधु खिल- खिलाकर हँस पड़े।

    थोड़ा आगे बढ़ने पर इस मण्डली को एक व्यक्ति रोगी की परिचर्या करता मिला। वह उसके घावों को धोकर मरहम पट्टी कर रहा था।

     

    साथ ही अपनी मधुर वाणी से उसे बार- बार सांत्वना दे रहा था।

    साधु कुछ देर उसे देखते रहे, उनकी आँखें छलछला आईं।

    आश्रम में लौटते ही शिष्यों ने उनसे पहले दो स्थानों पर हँसने व फिर रोने का कारण पूछा।

     

    वे बोले-‘बेटा पहले दो स्थानों पर तो मात्र आडम्बर था पर भगवान की प्राप्ति के लिए एक ही व्यक्ति आकुल दिखा- वह, जो रोगी की परिचर्या कर रहा था।

     

    उसकी सेवा भावना देखकर मेरा हृदय द्रवित हो उठा और सोचने लगा न जाने कब जनमानस धर्म के सच्चे स्वरूप को समझेगा।’

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    बड़ों की बात मानो

    एक बहुत घना जंगल था, उसमें पहाड़ थे और शीतल निर्मल जल के झरने बहते थे। जंगल में बहुत- से पशु रहते थे। पर्वत की गुफा में एक शेर- शेरनी और इन के दो छोटे बच्चे रहते थे।

     

    शेर और शेरनी अपने बच्चों को बहुत प्यार करते थे।

    जब शेर के बच्चे अपने माँ बाप के साथ जंगल में निकलते तो उन्हें बहुत अच्छा लगता था। लेकिन शेर- शेरनी अपने बच्चों को बहुत कम अपने साथ ले जाते थे।

     

    वे बच्चों को गुफा में छोड़कर वन में अपने भोजन की खोज में चले जाया करते थे।

    शेर और शेरनी अपने बच्चों को बार- बार समझाते थे कि वे अकेले गुफा से बाहर भूलकर भी न निकलें। लेकिन बड़े बच्चे को यह बात अच्छी नहीं लगती थी।

     

    एक दिन शेर- शेरनी जंगल में गये थे, बड़े बच्चे ने छोटे से कहा- चलो झरने से पानी पी आएँ और वन में थोड़ा घूमें। हिरनों को डरा देना मुझे बहुत अच्छा लगता है।

    छोटे बच्चे ने कहा- ‘पिता जी ने कहा है कि अकेले गुफा से मत निकलना। झरने के पास जाने को बहुत मना किया है।

     

    तुम ठहरो पिताजी या माताजी को आने दो। हम उनके साथ जाकर पानी पीलेंगे।’
    बड़े बच्चे ने कहा- ‘मुझे प्यास लगी है। सब पशु तो हम लोगों से डरते ही हैं। फिर डरने की क्या बातहै?’

    छोटा बच्चा अकेला जाने को तैयार नहीं हुआ। उसने कहा- ‘मैं तो माँ- बाप की बात मानूँगा। मुझे अकेला जाने में डर लगता है।’ बड़े भाई ने कहा।

     

    ‘तुम डरपोक हो, मत जाओ, मैं तो जाता हूँ।’ बड़ा बच्चा गुफा से निकला और झरने के पास गया। उसने पेट भर पानी पिया और तब हिरनों को ढकतेहुए इधर- उधर घूमने लगा।

    जंगल में उस दिन कुछ शिकारी आये हुए थे। शिकारियों ने दूर से शेर के बच्चे को अकेले घूमते देखा तो सोचा कि इसे पकड़कर किसी चिड़िया घर में बेच देने से अच्छे रुपये मिलेंगे।

     

    शिकारियों ने शेर के बच्चे को चारों ओर से घेर लिया और एक साथ उस पर टूट पड़े। उन लोगों ने कम्बल डालकर उस बच्चे को पकड़ लिया।

    बेचारा शेर का बच्चा क्या करता। वह अभी कुत्ते जितना बड़ा भी नहीं हुआ था। उसे कम्बल में खूब लपेटकर उन लोगों ने रस्सियों से बाँध दिया। वह न तो छटपटा सकता था, न गुर्रा सकता था।

    शिकारियों ने इस बच्चे को एक चिड़िया घर को बेच दिया। वहाँ वह एक लोहे के कटघरे में बंद कर दिया गया। वह बहुत दुःखी था।

     

    उसे अपने माँ- बाप की बहुत याद आती थी। बार- बार वह गुर्राताऔर लोहे की छड़ों को नोचता था, लेकिन उसके नोचने से छड़ तो टूट नहीं सकती थी।

    जब भी वह शेर का बच्चा किसी छोटे बालक को देखता तो बहुत गुर्राता और उछलता था। यदि कोई उसकी भाषा समझा सकता तो वह उससे अवश्य कहता- ‘तुम अपने माँ- बाप तथा बड़ों की बात अवश्य मानना।

     

    बड़ों की बात न मानने से पीछे पश्चात्ताप करना पड़ता है। मैं बड़ों की बात न मानने से ही यहाँ बंदी हुआ हूँ।’

    Moral- सच है- जे सठ निज अभिमान बस, सुनहिं न गुरुजन बैन।
    जे जग महँ नित लहहिं दुःख, कबहुँ न पावहिं चैन॥

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    Story-4 सेवाभावी की कसौटी

    स्वामीजी का प्रवचन समाप्त हुआ। अपने प्रवचन में उन्होंने सेवा- धर्म की महत्ता पर विस्तार से प्रकाश डाला और अन्त में यह निवेदन भी किया कि जो इस राह पर चलने के इच्छुक हों, वह मेरे कार्य में सहयोगी हो सकते हैं।

     

    सभा विसर्जन के समय दो व्यक्तियों ने आगे बढ़कर अपने नामलिखाये। स्वामीजी ने उसी समय दूसरे दिन आने का आदेश दिया।

    सभा का विसर्जन हो गया।

    लोग इधर- उधर बिखर गये। दूसरे दिन सड़क के किनारे एक महिला खड़ी थी, पास में घास का भारी ढेर। किसी राहगीर की प्रतीक्षा कर रही थी कि कोई आये और उसका बोझा उठवा दे।

     

    एक आदमी आया, महिला ने अनुनय- विनय की, पर उसने उपेक्षा की दृष्टि से देखा और बोला- ‘‘अभी मेरे पास समय नहीं है।

    मैं बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य को सम्पन्न करने जा रहा हूँ।’’इतना कह वह आगे बढ़ गया। थोड़ी ही दूर पर एक बैलगाड़ी दलदल में फँसी खड़ी थी।

     

    गाड़ीवान् बैलों पर डण्डे बरसा रहा था पर बैल एक कदम भी आगे न बढ़ पा रहे थे। यदि पीछे से कोई गाड़ी के पहिये को धक्का देकर आगे बढ़ा दे तो बैल उसे खींचकर दलदल से बाहर निकाल सकते थे।

     

    गाड़ीवान ने कहा- ‘‘भैया! आज तो मैं मुसीबत में फँस गया हूँ। मेरी थोड़ी सहायता करदो।’’

    राहगीर बोला- मैं इससे भी बड़ी सेवा करने स्वामी जी के पास जा रहा हूँ। फिर बिना इस कीचड़ में घुसे, धक्का देना भी सम्भव नहीं, अतः अपने कपड़े कौन खराब करे।

     

    इतना कहकर वह आगे बढ़ गया। और आगे चलने पर उसे एक नेत्रहीन वृद्धा मिली। जो अपनी लकड़ी सड़क पर खटखट कर दयनीय स्वर से कह रही थी,

    ‘‘कोई है क्या? जो मुझे सड़क के बायीं ओर वाली उस झोंपड़ी तक पहुँचा दे। भगवान् तुम्हारा भला करेगा। बड़ा अहसान होगा।

     

    ’’ वह व्यक्ति कुड़कुड़ाया- ‘‘क्षमा करोमाँ! क्यों मेरा सगुन बिगाड़ती हो? तुम शायद नहीं जानती मैं बड़ा आदमी बनने जा रहा हूँ। मुझे जल्दी पहुँचना है।’’

    इस तरह सबको दुत्कार कर वह स्वामीजी के पास पहुँचा। स्वामीजी उपासना के लिए बैठने ही वाले थे, उसके आने पर वह रुक गये।

    उन्होंने पूछा- क्या तुम वही व्यक्ति हो, जिसने कल की सभा में मेरे निवेदन पर समाज सेवा का व्रत लिया था और महान् बनने की इच्छा व्यक्त की थी।

    जी हाँ! बड़ी अच्छी बात है, आप समय पर आ गये। जरा देर बैठिये, मुझे एक अन्य व्यक्ति की भी प्रतीक्षा है, तुम्हारे साथ एक और नाम लिखाया गया है।

    जिस व्यक्ति को समय का मूल्य नहीं मालुम, वह अपने जीवन में क्या कर सकता है? उस व्यक्ति ने हँसते हुए कहा। स्वामीजी उसके व्यंग्य को समझ गये थे,

    फिर भी वह थोड़ी देर और प्रतीक्षा करना चाहते थे। इतने में ही दूसरा व्यक्ति भी आ गया।

     

    उसके कपड़े कीचड़ में सने हुए थे। साँस फूल रही थी। आते ही प्रणाम कर स्वामी जी से बोला- ‘‘कृपा कर क्षमा करें! मुझे आने में देर हो गई, मैं घर से तो समय पर निकला था, पर रास्ते में एक बोझा उठवाने में,

     

    एक गाड़ीवान् की गाड़ी को कीचड़ से बाहर निकालने में तथा एक नेत्रहीन वृद्धा को उसकी झोंपड़ी तक पहुँचाने में कुछ समय लग गया और पूर्व निर्धारित समय पर आपकी सेवा में उपस्थित न हो सका।’’

    स्वामीजी ने मुस्कारते हुए प्रथम आगन्तुक से कहा- दोनों की राह एक ही थी, पर तुम्हें सेवा के जो अवसर मिले, उनकी अवहेलना कर यहाँ चले आये।

    तुम अपना निर्णय स्वयं ही कर लो, क्या सेवा कार्यों में मुझे सहयोग प्रदान कर सकोगे?

    जिस व्यक्ति ने सेवा के अवसरों को खो दिया हो, वह भला क्या उत्तर देता

    Moral- Service is man Service to god

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    Story-5 ज्ञान की प्यास

    उन दिनों महादेव गोविंद रानडे हाई कोर्ट के जज थे। उन्हें भाषाएँ सीखने का बड़ा शौक था। अपने इस शौक के कारण उन्होंने अनेक भाषाएँ सीख ली थीं; किंतु बँगला भाषा अभी तक नहीं सीख पाए थे।

     

    अंत में उन्हें एक उपाय सूझा। उन्होंने एक बंगाली नाई से हजामत बनवानी शुरू कर दी। नाई जितनी देर तक उनकी हजामत बनाता, वे उससे बँगला भाषा सीखते रहते।

    रानडे की पत्नी को यह बुरा लगा। उन्होंने अपने पति से कहा, ‘‘आप हाई कोर्ट के जज होकर एक नाई से भाषा सीखते हैं। कोई देखेगा तो क्या इज्जत रह जाएगी ! आपको बँगला सीखनी ही है तो किसी विद्वान से सीखिए।’’

    रानडे ने हँसते हुए उत्तर दिया, ‘‘मैं तो ज्ञान का प्यासा हूँ। मुझे जाति-पाँत से क्या लेना-देना ?’’

    यह उत्तर सुन पत्नी फिर कुछ न बोलीं।

    Moral- ज्ञान ऊँच-नीच की किसी पिटारी में बंद नहीं रहता।

     

     

    Story -5

     

    “मन का आराम

     

    मतंग ऋषि पशु-पक्षियों के प्रति काफी स्नेह रखते थे। अक्सर वह अध्ययन और ईश्वरोपासना के बाद पक्षियों के साथ खेलने लग जाते थे। गौरैया और कौवे उनके इशारे पर जमीन पर उतर आते और उनके कंधों व हाथों पर बैठ जाते थे।

     

    एक दिन जब वे पक्षियों के बीच चहक रहे थे तभी अनंग ऋषि वहां आए। वह मतंग ऋषि का बहुत सम्मान करते थे।

    उन्हें पक्षियों के साथ खेलते देख वह बोले, ‘महाराज, आप इतने बड़े विद्वान होकर बच्चों की तरह चिड़ियों के साथ खेल रहे हैं। इससे आपका मूल्यवान समय नष्ट नहीं होता?’

     

    अनंग ऋषि के इस प्रश्न को सुनकर मतंग ऋषि मुस्करा दिए और उन्होंने अपने एक शिष्य को धनुष लेकर आने के लिए कहा। शिष्य कुछ ही देर में धनुष लेकर आ गया।

    मतंग ऋषि ने धनुष लिया और उसकी डोरी ढीली करके रख दी।

     

    अनंग ऋषि हैरानी से मतंग ऋषि को देखकर बोले, ‘आपने धनुष की डोरी ढीली करके क्यों रखी? आप इसके माध्यम से क्या कहना चाहते हैं?’

     

    मतंग ऋषि बोले, ‘मैंने तुम्हारे प्रश्न का जवाब दिया है।

    अब मैं इसे विस्तार से बताता हूं। हमारा मन धनुष की तरह है। अगर धनुष पर डोरी हमेशा चढ़ी रहे तो उसकी मजबूती कुछ ही समय में चली जाती है और वह जल्दी टूट जाता है,

     

    किंतु अगर काम पड़ने पर ही इस पर डोरी चढ़ाई जाए तो वह न सिर्फ अधिक समय तक टिकता है,

     

    बल्कि उससे काम भी अच्छे तरीके से होता है। इसी प्रकार काम करने पर ही मन को एकाग्र करना चाहिए। काम के बाद यदि उसे आराम मिलता रहे तो मन और अधिक मजबूत होगा। उसे स्फूर्ति मिलेगी। इससे वह लंबे समय तक स्वस्थ रहता है।’

     

    मतंग ऋषि का जवाब सुनकर अनंग ऋषि हाथ जोड़कर बोले, ‘मैं आपकी बात समझ गया। अब पता चला कि आप क्यों लगातार हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर रहे हैं।’ यह कहकर वह वहां से चले गए।

    Moral: We should give relaxe to mind anyhow.

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    Story -6

    “गुरु गोविंद सिंह जी से जुड़ी प्रेरणादायक कहानी

     

    यह बात उस समय की है जब गुरु गोविंद सिंह जी मुगलों से संघर्ष कर रहे थे। युद्ध में उनके सभी शिष्य अपने-अपने तरीके से सहयोग कर रहे थे।

     

    शाम को युद्ध समाप्त हो जाने के बाद गुरु गोविंद सिंह जी के सभी सेनानी उनके साथ बैठकर उनसे उपदेश ग्रहण करते और आगे की रणनीति पर विचार-विमर्श करते थे।

     

    हर सेनानी को गुरु जी ने निश्चित जिम्मेदारी सौंप रखी थी ताकि वे अपना ध्यान युद्ध पर लगा सकें।

     

    एक दिन उन्होंने अपने एक शिष्य “भाई घनैय्या जी” को युद्ध में सैनिकों को पानी पिलाने का काम सौंपा। वह अपने कंधे पर पानी से भरा मशक लटकाकर सैनिकों को पानी पिलाने के काम में तन-मन से जुट गया। युद्ध करते हुए काफी समय बीत गया।

     

    एक दिन किसी सैनिक ने गुरु गोविंद सिंह जी से शिकायत की कि ‘भाई घनैय्या जी! घायल सिखों के साथ दुश्मन के भी घायल सैनिकों को पानी पिलाता है।

     

    जब उसे मना करते हैं तो वह हमारी बात को स्वीकार नहीं करता और अपने काम में लगा रहता है।’

     

    गुरु जी ने घनैय्या को अपने पास बुलाया और पूछा, “क्यों भाई घनैय्या जी! क्या यह सच है कि तुम घायल सिख सैनिकों के साथ मुगलों के सैनिकों को भी पानी पिलाते हो?”

     

    घनैय्या ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया, “हां, गुरु महाराज! यह पूरी तरह सच है कि मैं शत्रु के सैनिकों को भी पानी पिलाता हूं क्योंकि युद्ध भूमि में पहुंचने पर मुझे शत्रु और मित्र में कोई अंतर नहीं दिखाई देता।

     

    फिर मंत आपकी दी हुई शिक्षा के अनुसार सब में एक ही परमात्मा को देखता हूं। इसलिए मुझे जो भी घायल पड़ा दिखाई देता है, वह चाहे सिख हो या मुगल, मैं उन सभी को समान रूप से पानी पिलाता हूं।”

     

    गुरु जी ने भाई घनैय्या जी, का उत्तर सुनकर उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, “तूने मेरी दी हुई शिक्षा को सही अर्थों में आत्मसात किया है और उसे सार्थक सिद्ध किया है। तू मेरा सच्चा शिष्य है।”

     

    Moral- दोस्त-दुश्मन, अपना-पराया, इनसे ऊपर उठ कर की गई सेवा ही मानव धर्म कहलाती है।























  • inspirational stories in hindi  for success-part 5

    inspirational stories in hindi for success-part 5

    motivational hindi Story-1

    inspirational stories in hindi for success

    घनश्याम काका डाक विभाग में एक कर्मचारी थे।

    बरसों से वे सीतापुर और आस पास के गाँव में चिट्ठियां बांटने का काम करते थे।

     

    एक दिन उन्हें एक चिट्ठी मिली, पता सीतापुर के करीब का ही था लेकिन आज से पहले उन्होंने उस पते पर कोई चिट्ठी नहीं पहुंचाई थी।

     

    हररोज की तरह आज भी उन्होंने अपना बैग उठाया और चिट्ठियां बांटने निकलपड़े।

    सारी चिट्ठियां बांटने के बाद वे उस नए पते की ओर बढ़ने लगे।

    दरवाजे पर पहुँच कर उन्होंने आवाज़ दी, “पोस्टमैन!”

     

    अन्दर से किसी लड़की की आवाज़ आई, “काका, वहीं दरवाजे के नीचे से चिट्ठी डाल दीजिये।”

     

    “अजीब लड़की है मैं इतनी दूर से चिट्ठी लेकर आ सकता हूँ और ये महारानी दरवाजे तक भी नहीं निकल सकतीं !”, काका ने मन ही मन सोचा।

     

    “बहार आइये! रजिस्ट्री आई है, हस्ताक्षर करने पर ही मिलेगी!”, काका खीजते हुए बोले।

     

    “अभी आई।”, अन्दर से आवाज़ आई।

     

    काका इंतज़ार करने लगे, पर जब दो मिनट बाद भी कोई आवाज़ नहीं आयी तो उनके धीरज का बाँध टूटने लगा।

     

    “ये एक काम नहीं है मेरे पास, जल्दी कर और भी चिट्ठियां पहुंचानी है”, और ऐसा कहकर काका दरवाज़ाजोर जोर से पीटने लगे।

     

    कुछ देर बाद दरवाज़ा खुला।

     

    सामने का दृश्य देख कर काका चौंक गए।

     

    एक बारह- तेरह साल की लड़की थी जिसके दोनों पैर कटे हुए थे।

    लेकिन अब उन्हें अपनी अधीरता पर शर्मिंदगी हो रही थी।

     

    लड़की बोली, “क्षमा कीजियेगा मैंने आने में देर लगा दी, बताइए हस्ताक्षर कहाँ करने हैं?”

     

    काका ने हस्ताक्षर कराये और वहां से चले गए।

     

    इस घटना के आठ-दस दिन बाद काका को फिर उसी पते की चिट्ठी मिली।

    इस बार भी सब जगह चिट्ठियां पहुँचाने के बाद वे उस घर के सामने पहुंचे!

     

    “चिट्ठी आई है, हस्ताक्षर की भी ज़रूरत नहीं है…नीचे से डाल दूँ।”, काका बोले।

     

    “नहीं-नहीं, रुकिए मैं अभी आई।”, लड़की भीतर से चिल्लाई।

     

    कुछ देर बाद दरवाजा खुला।

     

    लड़की के हाथ में गिफ्ट पैकिंग किया हुआ एक डिब्बा था।

     

    “काका लाइए मेरी चिट्ठी और लीजिये अपना तोहफ़ा।”, लड़की मुस्कुराते हुए बोली।

     

    “इसकी क्या ज़रूरत है बेटा”, काका संकोच से उपहार लेते हुए बोले।

     

    लड़की बोली, “बस ऐसे ही काका…आप इसे ले जाइए और घर जा कर ही खोलियेगा!”

     

    काका डिब्बा लेकर घर की और बढ़ चले, उन्हें समझ नहीं आर रहा था कि डिब्बे में क्या होगा!

     

    घर पहुँचते ही उन्होंने डिब्बा खोला, और तोहफ़ा देखते ही उनकी आँखों से आंसू टपकने लगे।

     

    डिब्बे में एक जोड़ी चप्पलें थीं।

    काका फटी हुई चप्पलें पहने ही चिट्ठियां बांटा करते थे लेकिन आज तक किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया था।

     

    ये उनके जीवन का सबसे कीमती तोहफ़ा था…काका चप्पलें कलेजे से लगा कर रोने लगे;

    उनके मन में बार-बार एक ही विचार आ रहा था- बच्ची ने उन्हें चप्पलें तो दे दीं पर वे उसे पैर कहाँ से लाकर देंगे?

     

    दोस्तों, संवेदनशीलता मनुष्यका एक बहुत बड़ा मानवीय गुण है।

    दूसरों के दुखों को अपना दुख समजकर महसूस करना और उसे कम करने का निस्वार्थ प्रयास करना एक महान कार्य है।

    जिस बच्ची के खुद के पैर न हों उसकी दूसरों के पैरों के प्रति संवेदनशीलता हमें एक बहुत बड़ा सन्देश देती है।

    आइये हम भी अपने समाज, अपने आस-पड़ोस, अपने यार-मित्रों-अजनबियों सभी के प्रति संवेदनशील बनें…आइये हम भी किसी के नंगे पाँव की चप्पलें बनें और दुःख से भरी इस दुनिया में कुछ खुशियाँ

    फैलाएं!

    ऐसे में राज कपूर के फिल्म की दिल को छू जाने वाली कुछ पंक्तियां याद आती है।

    inspirational stories in hindi for success

    किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार

    किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार

    किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार

    जीना इसी का नाम है

    किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार

    किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार

    किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार

    जीना इसी का नाम है|  Motivational story in hindi for success-part 1

     inspirational hindi Story-2

    एक समय की बात है।एक रेलवे स्टेशन पर कोई एक भिखारी पेँसिलोँ से भरा एक कटोरा लेकर बैठा  था।

    एक युवा आदमी उधर से निकला और उसनेँ कटोरे मेँ कुछ रूपये डाल दिए, लेकिन उसनेँ कोई पेँसिल नहीँ ली।  

    बादमें वह ट्रेन मेँ बैठ गया। ट्रेन के डिब्बे का दरवाजा बंद होने ही वाला था कि वह युवा आदमी अचानक ट्रेन से उतर कर भिखारी के पास आया और कुछ पेँसिल उठा कर बोला,

    “मैँ कुछ पेँसिल लूँगा। इन पेँसिलोँ की कीमत है, आखिरकार तुम एक व्यापारी हो और मैँ भी।” उसके बाद वह युवा तेजी से ट्रेन मेँ चढ़ गया।

     

    कुछ वर्षों बाद, वह युवा आदमी एक पार्टी मेँ गया। वह भिखारी भी वहाँ मौजूद था। भिखारी नेँ उस युवा आदमी को देखते ही

    पहचान लिया, वह उसके पास जाकर बोला-” आप शायद मुझे नहीँ पहचान सकोगे, लेकिन मैँ आपको पहचानता हूँ।”

     

    उसके बाद उसनेँ उसके साथ घटी उस घटना का जिक्र किया। युवा आदमी  नेँ कहा-” तुम्हारे याद दिलानेँ पर मुझे याद आ रहा है कि तुम भीख मांग रहे थे। लेकिन तुम यहाँ सूट और टाई मेँ ?”

     

    भिखारी नेँ जवाब दिया, ” आपको शायद मालूम नहीँ है कि आपनेँ मेरे लिए उस दिन क्या किया।

    मुझ पर दया करने के बदले मेरे साथ सम्मान के साथ पेश आये। आपनेँ कटोरे से पेँसिल उठाकर कहा, ‘इनकी कीमत है, आखिरकार तुम भी एक व्यापारी हो और मैँ भी।’

     

    आप जब वहासे गए बादमें मैंने बहूत सोचा, मैँ यहाँ क्या काम कर रहा हूँ?

    मैँ एैसे भीख क्योँ माँग रहा हूँ? मैनेँ अपनीँ जिँदगी को दुरुस्त करने के लिये कुछ सही काम करनेँ का फैसला लिया। मैनेँ अपना थैला उठाया और घूम-घूम कर पेंसिल बेचने लगा ।

    फिर धीरे -धीरे मेरा व्यापार बढ़ता गया , मैं पेन – किताबे और अन्य चीजें भी बेचने लगा और आज पूरे शहर में मैं इन चीजों का सबसे बड़ा थोक विक्रेता हूँ।

     

    मेरा सम्मान लौटानेँ के लिये मैँ आपका पूरे दिल से धन्यवाद देता हूँ क्योँकि उस घटना नेँ आज मेरा जीवन पूरे का पूरा ही बदल दिया ।”

     

    दोस्तो, आपका अपनेँ बारे मेँ क्या ख्याल है?

    अपने खुद के लिये आप क्या राय रख रहे हैँ? क्या आप अपनेँ आपको ठीक तरह से पहचान पाते हैँ?

    इन सारी चीजोँ को ही हम अप्रत्यक्ष रूप से आत्मसम्मान कहते हैँ।

    दुसरे लोग हमारे बारे मेँ क्या सोचते हैँ ये बाते उतनी मायनेँ नहीँ रखती या कहेँ तो कुछ भी मायनेँ नहीँ रखती लेकिन आप अपनेँ बारे मेँ क्या राय रखते हैँ, क्या सोचते हैँ ये बात बहूत ही ज्यादा मायनेँ रखती है।

    लेकिन एक बात निश्चित है कि हम अपनेँ बारे मेँ जो भी सोँचते हैँ,

    उसका एहसास जानेँ अनजानेँ मेँ दुसरोँ को भी करा ही देते हैँ और इसमेँ कोई भी शक नहीँ कि इसी कारण की वजह से दूसरे लोग भी हमारे साथ उसी रूप से पेश आते हैँ।

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    ध्यान रहे कि आत्म-सम्मान की वजह से ही हमारे अंदर प्रेरणा पैदा होती है या कहेँ की हम स्व्यंप्रेरित होते हैँ।

    इसलिए आवश्यक है कि हम अपनेँ बारे मेँ एक श्रेष्ठ राय बनाएं और आत्मसम्मान से पूर्ण जीवन व्यतीत करे।

    साथी न कारवां है
    ये तेरा इम्तिहां है
    यूँ ही चला चल दिल के सहारे
    करती है मंज़िल तुझको इशारे
    देख कहीं कोई रोक नहीं ले तुझको पुकार के
    ओ राही, ओ राही…रुक जाना नहीं तू कहीं हार के
    काँटों पे चल के मिलेंगे साये बहार के
    ओ राही, ओ राही  inspirational stories in hindi for success

    Inspirational short stories about life in hindi-part 2

     inspiring hindi Stoty-3

    किसी शहर के होटल का एक कमरा ..

     

    विवाह की बात चल रही है

    लडका-लडकी को एक दूसरे को समजने के लिये अकेला छोड दिया गया है!

     

    बिना समय खोए लडके ने प्रारंभ कर दिया है।

    मेरा परिवार मेरे लिये सर्वस्व  है

    माँ को एक ऐसी लड़की चाहिये

    जो पढी लिखी हो

    घर के काम में काबिल हो

    संस्कार पूर्ण हो

    सबका अच्छी तराह से ख्याल रखे।

    उनके बेटे के साथ कदम से कदम मिलाकर चले !

     

    हमारा परिवार पुराने ख्यालात का तो हरगिज नहीं पर ये जरूर चाहता है

    कि ऐसा कोई हो जो हमारे रीति रिवाज को अपना ले और उसका सम्मान करे।

     

    परिवार की महिलायें ‘चश्मा’ नहीं लगातीं हैं!

     

    इश्वर कृपा से हमारे पास सब कुछ है

    हमें आपसे कुछ अपेक्षा नही।

    बस लडकी घर को जोडकर रखने वाली चाहिये!

     

    मेरी कोई खास  पसंद नहीं है

    बस मुझे समझने वाली चाहिये

    थोडा बहुत देश-समाज की भी जानकारी रखती हो

    हाँ जरा लम्बे बाल और साडी वाली लडकियाँ मुझे अच्छी लगतीं हैं!

     

    आपकी कोई इच्छा हो तो कहिए!!!

     

    बहुत देर से मौन बैठी लडकी ने लाज का घूँघट हटाकर

    स्वाभिमान की चूनर सिर पर रख ली है!

     

    पूरे विश्वास से बोलना शुरू कर दिया है

    मेरा परिवार मेरी शक्ति है!

    पिताजी को दामाद के रूप में ऐसा लड़का चाहिये

    जो उनके हर सुख दुख में ‘बिना अहसान’ उनके साथ खडा रहे

    बेटी के साथ घर के काम में कुछ मदद भी करे

    जिसे अपनी माँ और पत्नी के बीच ‘पुल’ बनना आता हो

    और जो उनकी बेटी को अपने परिवार की ‘केयर टेकर’ बनाकर न ले जाये !

     

    जीवनसाथी से ज्यादा उम्मीद तो नहीं

    लेकिन ऐसा कोई जो अपनी पत्नी को परिवार में सम्मान दिला पाये

    ‘पठानी सूट’ में बिना मूँछ-दाढी वाले लडके पसंद हैं!

     

    अपने ‘स्पैक्ट्स’ को खुद से भी ज्यादा प्यार करती हूँ!

     

    ‘सरनेम’ बदलना या न बदलना अपने अधिकार क्षेत्र में रखना चाहूँगी

    आप और हम पढे लिखे हैं

    तो विवाह का खर्च आधा आधा दोनों परिवार उठायें

    देश के विकास में ये भी एक पहल होनी चाहिये !

    और हाँ…..

    हर बात सिर झुकाकर मानते रहना संस्कारी होने की निशानी नहीं है!

     

    लडका भौचक्का हो गया है!!!

     

    लडकी कमरा छोडकर जा चुकी है

    चारों तरफ सन्नाटा फैल गया है !

     

    थोड़े दूर सभ्यता का तराजू मंद मंद मुस्कुरा रहा है। अब सदियों बाद उसके दोनों पलडे बराबर  आ गये हैं!! जब दोनों गाड़ी के पहियों के बिना गाड़ी ना चल सकेगी तो एक पहिये को कम क्यों आंका जाए।!! inspiring stories in hindi for success-part 3

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    life changing hindi Story-4

    जिंदगी का बहोत बड़ा  सबक दे जाती है ये कहानी ….

     

    जीवन के बीस साल हवा की तरह उड़ गए । फिर शुरू हुई नोकरी की तलाश। ये नहीं वो, दूर नहीं पास ।

    ऐसा करते करते दो तीन नोकरियाँ छोड़ते एक तय हुई। थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई।

     

    फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का चेक। वह बैंक में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले शून्यों का अंतहीन खेल।

    दो तीन साल और निकल गए। बैंक में थोड़े और शून्य बढ़ गए। उम्र पच्चीस हो गयी।

     

    और फिर विवाह हो गया। जीवन की आम कहानी शुरू हो गयी। शुरू के एक दो साल नर्म, गुलाबी, रसीले, सपनीले गुजरे ।

    हाथो में हाथ डालकर घूमना फिरना, रंग बिरंगे सपने। पर ये दिन जल्दी ही बीत गए।

     

    और फिर बच्चे के आने ही आहट हुई। वर्ष भर में पालना झूलने लगा।

    अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया। उठना बैठना खाना पीना लाड दुलार ।

     

    समय कैसे फटाफट निकल गया, पता ही ना चला।

    इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया, बाते करना घूमना फिरना कब बंद हो गया दोनों को पता ही न चला।

     

    बच्चा बड़ा होता गया। वो बच्चे में व्यस्त हो गयी, मैं अपने काम में ।

    घर और गाडी की क़िस्त, बच्चे की जिम्मेदारी, शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में शुन्य बढाने की चिंता।

    उसने भी अपने आप काम में पूरी तरह झोंक दिया और मेने भी अपने आप को।

     

    इतने में मैं पैतीस का हो गया। घर, गाडी, बैंक में शुन्य, परिवार सब है फिर भी कुछ कमी है ? पर वो क्या है समझ नहीं आया। उसकी चिड चिड बढती गयी, मैं उदासीन होने लगा।

     

    इस बीच दिन बीतते गए। समय गुजरता गया। बच्चा बड़ा होता गया।

    उसका खुद का संसार तैयार होता गया। कब दसवीं आई और चली गयी पता ही नहीं चला। तब तक दोनों ही चालीस बयालीस के हो गए। बैंक में शुन्य बढ़ता ही गया।

     

    एक नितांत एकांत क्षण में मुझे वो गुजरे दिन याद आये और मौका देख कर उस से कहा ” अरे जरा यहाँ आओ, पास बैठो।

    चलो हाथ में हाथ डालकर कही घूम के आते हैं।”

     

    उसने अजीब नजरो से मुझे देखा और कहा कि “तुम्हे कुछ भी सूझता है यहाँ ढेर सारा काम पड़ा है तुम्हे बातो की सूझ रही है ।”

    कमर में पल्लू खोंस वो निकल गयी।

     

    तो फिर आया पैंतालिसवा साल, आँखों पर चश्मा लग गया, बाल काला रंग छोड़ने लगे, दिमाग में कुछ उलझने शुरू हो गयी।

     

    बेटा उधर कॉलेज में था, इधर बैंक में शुन्य बढ़ रहे थे। देखते ही देखते उसका कॉलेज ख़त्म। वह अपने पैरो पे खड़ा हो गया। उसके पंख फूटे और उड़ गया परदेश।

     

    उसके बालो का काला रंग भी उड़ने लगा। कभी कभी दिमाग साथ छोड़ने लगा। उसे चश्मा भी लग गया। मैं खुद बुढा हो गया। वो भी उमरदराज लगने लगी।

     

    दोनों पचपन से साठ की और बढ़ने लगे। बैंक के शून्यों की कोई खबर नहीं। बाहर आने जाने के कार्यक्रम बंद होने लगे।

     

    अब तो गोली दवाइयों के दिन और समय निश्चित होने लगे। बच्चे बड़े होंगे तब हम साथ रहेंगे सोच कर लिया गया घर अब बोझ लगने लगा। बच्चे कब वापिस आयेंगे यही सोचते सोचते बाकी के दिन गुजरने लगे।

     

    एक दिन यूँ ही सोफे पे बेठा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था। वो दिया बाती कर रही थी। तभी फोन की घंटी बजी। लपक के फोन उठाया। दूसरी तरफ बेटा था। जिसने कहा कि उसने शादी कर ली और अब परदेश में ही रहेगा।

     

    उसने ये भी कहा कि पिताजी आपके बैंक के शून्यों को किसी वृद्धाश्रम में दे देना। और आप भी वही रह लेना। कुछ और ओपचारिक बाते कह कर बेटे ने फोन रख दिया।

     

    मैं पुन: सोफे पर आकर बेठ गया। उसकी भी दिया बाती ख़त्म होने को आई थी।

    मैंने उसे आवाज दी “चलो आज फिर हाथो में हाथ लेके बात करते हैं “

    वो तुरंत बोली ” अभी आई”।

     

    मुझे विश्वास नहीं हुआ। चेहरा ख़ुशी से चमक उठा।आँखे भर आई। आँखों से आंसू गिरने लगे और गाल भीग गए ।

    अचानक आँखों की चमक फीकी पड़ गयी और मैं निस्तेज हो गया। हमेशा के लिए !!

     

    उसने शेष पूजा की और मेरे पास आके बैठ गयी “बोलो क्या बोल रहे थे?”

     

    लेकिन मेने कुछ नहीं कहा। उसने मेरे शरीर को छू कर देखा। शरीर बिलकुल ठंडा पड गया था। मैं उसकी और एकटक देख रहा था।

     

    क्षण भर को वो शून्य हो गयी।

    ” क्या करू ? “

     

    उसे कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन एक दो मिनट में ही वो चेतन्य हो गयी।

    धीरे से उठी पूजा घर में गयी। एक अगरबत्ती की। इश्वर को प्रणाम किया। और फिर से आके सोफे पे बैठ गयी।

     

    मेरा ठंडा हाथ अपने हाथो में लिया और बोली

    “चलो कहाँ घुमने चलना है तुम्हे ? क्या बातें करनी हैं तुम्हे ?” बोलो !!

    ऐसा कहते हुए उसकी आँखे भर आई !!……

    वो एकटक मुझे देखती रही। आँखों से अश्रु धारा बह निकली।

    मेरा सर उसके कंधो पर गिर गया। ठंडी हवा का झोंका अब भी चल रहा था।

     

    क्या ये ही जिन्दगी है ? नहीं ??

     

    सब अपना नसीब साथ लेके आते हैं इसलिए कुछ समय अपने लिए भी निकालो ।

    जीवन अपना है तो जीने के तरीके भी अपने रखो। शुरुआत आज से करो। क्यूंकि कल कभी नहीं आएगा।……

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    Story -5

    एक समय की बात है।

    सभी देवताओं में एक चर्चा हो रहो थी, चर्चा इस बात पर थी कि मानव की हर आकांक्षाओं को पूरा करने वाली गुप्त चमत्कारी परम शक्तियों को कहाँ छुपाया जाये।

    सभी देवताओं में इस पर बहुत बहस हुई। एक देवता ने अपना मंतव्य रखा और कहा कि इसे हम एक घने जंगल की गुफा में रख देतेतो बहोत अच्छा होगा।

    दूसरे देवता ने असहमति जताते हुवे कहा

    अरे नहीं हम इसे एक पर्वत की टोच पर छिपा देंगे।

    उस देवता ने अभी उसकी बात ठीक पूरी भी नहीं की थी कि कोई कहने लगा , “न तो हम इसे कहीं गुफा में छिपाएंगे और न ही इसे पर्वत की टोच पर हम इसे समुद्र की गहराइयों में छिपा देते हैं

    यही जगह इसके लिए सबसे अनुकूल रहेगी ।”

    सभी के मंतव्य समाप्त हो जाने के बाद एक बुद्धिमान देवता ने कहा क्यों न हम मनुष्य की चमत्कारिक शक्तियों को मानव -मन की गहराइयों में छिपा दें।

    क्यूंकि बचपन से ही उसका मन इधर -उधर दौड़ता रहता है, मनुष्य कभी सोचभी नहीं  सकेगा कि ऐसी अदभुत और अद्वितीय शक्तियां उसके भीतर भी छिपी हो सकती हैं ।

    मानव इन्हें बाह्य जगत में खोजता रहेगा इसलिए इन विलक्षण शक्तियों को हम उसके मन की निचली तह में छिपा देंगे।

    बाकी सब देवता भी इस सुझाव पर सहमत हो गए। और ऐसा ही किया गया , मानव के अंदर ही चमत्कारी शक्तियों का भण्डार छुपा दिया गया,

    बहोत कम लोगों को पता है कि मानव मन में अद्भुत शक्तियां छिपी हैं।

    मित्रो, ये  कहानी का मतलब यह है कि मनुष्य का मन असीम ऊर्जा का स्त्रोत है।

    मानव जो भी चाहे वो हासिल कर सकता है। मनुष्य के लिए कुछ भी अशकय नहीं है।

    किंतु बड़े अफसोस की बात है उसे खुद ही विश्वास नहीं होता कि उसके भीतर इतनी शक्तियां बिराजमान हैं।  

    इसलिए अपने अंदर छिपी हुई शक्तियों को पहचानिये, उन्हें पहाड़ों में, गुफामें या समुद्र में मत ढूंढिए बल्कि अपने भीतर खोजिए और अपनी शक्तियों को निखारिए।

    हथेलियों से अपनी आँखों को बंध करके अंधकार होने की शिकायत मत कीजिये। आँखें खोलिए ,

    अपने अंदर झांकिए और अपनी असीम शक्तियों का उपयोग कर जिंदगी का हर एक सपना पूरा कर दीजिए।

    Motivational story in hindi about life part-4

     

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  • Motivational story in hindi about life part-4

    Motivational story in hindi about life part-4

     Motivational story in hindi about life

     inspiring hindi Story -1

    सुनील करीब 18 साल का एक लड़का था और मुंबई की एक सोसाइटी में रहता था।

    सुनील के पिता का छोटा कारोबार था। जिससे वह अपना गुजारा करते थे।

    सुनील वैसे तो देखा जाए तो बहुत भला लड़का था लेकिन उसमें एक बुरी आदत घर कर गई थी और वह आदत थी फिजूलखर्ची की।

    सुनील बार-बार अपने पिता से पैसे मांगा करता और बाद में पैसे मौज शौक और फिल्में देखने में उड़ा देता।

    एक बार पिता ने सुनील को कहा, बेटा तुझे नहीं लगता कि अब तू बड़ा हो गया है और तुझे अपनी जिम्मेदारियों का अच्छी तरह से एहसास होना चाहिए।

    बार-बार तुम मुझसे पैसे मांगते रहता है और जहां जी में आए वहां उड़ा देता है क्या यह ठीक है?

    ऐसा सुनकर सुनील बेफिक्र होकर बोला, पिताजी आप भी ना

    मैं कहां आपके पास से हजारों रुपए लेता हूं।

    थोड़े से पैसों के लिए आप मुझे इतना बड़ा ज्ञान दे रहे हैं?! इतने पैसे तो मैं कभी भी आपको वापस कर सकता हूं। सुनील नाराज हो गया।

    सुनील की बात सुन के पिताजी को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन उसको पता लग गया था कि अब डांट फटकार से कुछ बात

    बनेगी नही। पिताजी ने कहा यह तो तूने बहुत अच्छी बात कही चले ऐसा कर तू मुझे हर रोज का 1 ₹ ला कर दे दिया कर।

    सुनील खुश हो गया और अपने आप को विजेता मानकर वहां से चल दिया।

    अगले दिन सुनील जब पिताजी के सामने आया तो उसको देखते ही पिता जी बोले बेटा याद है ना मेरा 1 ₹?

    पिता की बात सुनकर सुनील जरा चमक गया फिर संभलते हुए जल्दी से अपनी दादी मां से 1₹ लेकर वापस आया।

    ये लो पिताजी आपका एक रुपया। इतना कहते हुए उसने 1₹ पिताजी को दे दिया।

    उसे लेते ही पिताजी ने सिक्का जलती हुई भट्ठी में डाल दिया।

    अरे पिताजी आपने ये  क्या किया और क्यों किया?

    सुनील हैरान रह गया।

    पिताजी मुस्कुरा कर बोले , मैं चाहे जो भी करूं तुझे इससे क्या मतलब?

    सुनील ने ज्यादा दलील नहीं की और बिना कुछ कहे वहां से चला गया।

    अब अगले दिन फिर से सुनील के पिता ने उससे 1₹  मांगा तो इस बार सुनील ने अपनी मां से पैसा मांग कर दे दिया।

    कई दिनों तक ऐसे ही होता रहा सुनील रोज अपने कोई दोस्त, जान पहचान वाले, सगे संबंधी से पैसे ले लेता और पिताजी को दे देता और पिताजी सिक्के को बड़े आराम से भट्ठी के हवाले कर देते।

    अब रोज की आदत से तंग लोग सुनील को पैसे देने से कतरा ने लगे।

    सुनील को अब फिक्र होने लगी पिताजी को वह क्या मुंह दिखाएगा।

    धीरे-धीरे समय बीतता गया सुनील को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि करे तो क्या करें? सिर्फ ₹1 ना दे पानी की शर्मिंदगी का अहसास वह झेलना नहीं चाहता था। तभी उसे एक मजदूर दिखा

    जो किसी मुसाफिर को हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शे से लेकर कहीं जा रहा था।

    सुनील ने उसे कहा भैया कृपया आप मुझे थोड़ी देर के लिए यह रिक्शा खींचने दोगे? उसके बदले में मैं तुमसे बस फक्त 1 ₹ लूंगा।

    थके हुए रिक्शा वाले ने जल्दी से हां कह दी।

    अब सुनील रिक्शा खींचने लगा लेकिन यह काम उसने जितना सोचा था इतना आसान नहीं था।

    थोड़ी देर में उनकी हथेलियों में छाले पड़ गए, हाथ पांव फूल गए। जैसे तैसे करके उसने अपना काम पूरा किया और बदले में जिंदगी में अपनी कमाई का 1₹ कमाया।

    आज पिताजी के पास पहुंचते वक्त उसके चेहरे पर अलग ही भाव थे। पिताजी के पास पहुंच कर उसने बड़े गर्व से 1₹ पिताजी के हाथ में दिया।

    हर रोज की तरह पिताजी ने रुपया लेते ही उसे भट्टी में फेंकने के लिए जैसे ही अपना हाथ बढ़ाया

    सुनील चिल्लाया, आप ऐसा नहीं कर सकते आपको पता है यह मेरे पसीने की कमाई है।

    फिर सुनील ने पूरी घटना सुनाई।

    पिताजी आगे बढ़े और सुनील को अपने गले से लगाया।

    अब बात समझ में आई बेटा इतने दिनों से मैं सिक्के को जब फेंक रहा था तब तूने मुझे एक बार भी नहीं रोका।

    लेकिन आज जब तूने अपनी मेहनत की कमाई को आदमी जाते देखा तो तुझ से बर्दाश्त नहीं हुआ ठीक वैसे ही जब तू मेरी मेहनत की कमाई को फिजूल खर्चे में उड़ाता था तो मुझे इतनी ही तकलीफ होती थी।

    इसलिए पैसे की कीमत समझ बेटा कभी भी पैसे बर्बाद नहीं करनी चाहिए चाहे वह तुम्हारे हो या किसी और के।

    अब सुनील को पिता की बात समझ में आ चुकी थी उसने तुरंत ही पिता से अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी।

    आज उसे ₹1 की कीमत समझ आ चुकी थी और उसने मन ही मन में संकल्प कर लिया कि अब वह कभी भी पैसे की बर्बादी नहीं करेगा।

    Motivational story in hindi for success-part 1

     

    Motivational story in hindi about life

      inspirational story about life-2

     

    सरिता परबतो  की कठिन व लम्बी सफर के बाद तराई में पहुंची। उसके दोनों ही किनारों पर गोलाकार, अण्डाकार व बिना किसी निश्चित आकार के कई पत्थरों का ढेर सा लगा हुआ था।

    वह पर दो पत्थरों के बीच आपस में परिचय बढ़ने लगा।

    दोनों एक दूसरे से अपने मन की बातें कहने-सुनने लगे।

     

    उनमेंसे एक पत्थर एकदम गोल-मटोल, चिकना व अत्यंत आकर्षक था जबकि दूसरा पत्थर बिना किसी निश्चित आकार का अनाकर्षक था।

     

    एक बार इनमें से बेडौल, खुरदरे पत्थर ने चिकने पत्थर से पूछा, ‘‘हम दोनों ही दूर ऊंचे पर्वतों से बहकर आए हैं फिर तुम  इतने गोल-मटोल, चिकने व आकर्षक क्यों हो जबकि मैं नहीं?’’

     

    यह सुनकर चिकना पत्थर बोला, “पता है शुरुआत में मैं भी बिलकुल तुम्हारी तरह ही था लेकिन उसके बाद मैं निरंतर कई सालों तक बहता और लगातार टूटता व घिसता रहा हूं…

    ना जाने मैंने कितने तूफानों को झेला है… कितनी ही बार नदी के तेज थपेड़ों ने मुझे चट्टानों पर पटका है…तो कभी अपनी धार से मेरे शरीर को  काटा है… तब जाकर मैंने ये रूप पाया है।

     

    तुझे पता है? मेरे पास हमेंशा ये विकल्प था कि मैं इन कठनाइयों से बच जाऊं और आराम से एक किनारे पड़ा रहूँ…पर क्या ऐसे जीना भी कोई जीना है?

    नहीं, मेरी नज़रों में तो ये मौत से भी बदतर है!

     

    तु भी अपने इस रूप से निराश मत हो… तुझे अभी और संघर्ष करना है और निरंतर संघर्ष करते रहा तो एक दिन तु मुझसे भी अधिक सुंदर, गोल-मटोल, चिकने व आकर्षक बन जाएगा।

     

    क्यो स्वीकारे उस रूप को जो हमारे अनुरूप ना हो… तुम आज वही हो जो मैं कल था…. कल तुम वही होगे जो मैं आज हूँ… या शायद उससे भी बेहतर!”, चिकने पत्थर ने अपनी बात पूरी की।

     

    संघर्ष में इतनी ताकत होती है कि वो इंसान के जीवन को बदल कर रख देता है।

    आज आप चाहे कितनी ही विषम परिस्थति में क्यों न हों… संघर्ष करना मत छोड़िये…. अपने प्रयास बंद मत करिए. आपको बहुत बार लगेगा कि आपके प्रयत्नों का कोई फल नहीं मिल रहा लेकिन फिर भी प्रयत्न करना मत छोडिये।

    और जब आप ऐसा करेंगे तो दुनिया की कोई ताकत नहीं जो आपको सफल होने से रोक पाएगी।

    Inspirational short stories about life in hindi-part 2

    Motivational story in hindi about life

     Motivational Story for success-3

     

    आदरणीय गुरुजी,

     

    मैं श्याम  हूँ, आपका पुराना छात्र. शायद आपको मेरा नाम भी याद ना हो, कोई बात नहीं, हम जैसों को कोई क्या याद रखेगा|

    मुझे आज आपसे कुछ कहना है सो ये चिट्ठी डाक बाबु से लिखवा रहा हूँ|

     

    गुरुजी जब   मैं पांच साल का था जब मेरे पिताजी ने आपकी शाला में मेरा दाखिला कराया था.

    उनका कहना था कि सरकारी स्कूल जाऊँगा तो पढना-लिखना सीख जाऊँगा और बड़ा होकर मुझे उनकी तरह मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी,

    दो वक़्त की रोटी के लिए तपते शरीर में भी दिन-रात काम नहीं करना पड़ेगा…

    अगर मैं पढ़-लिख जाऊँगा तो इतना कमा पाऊंगा कि मेरे बच्चे कभी भूखे पेट नहीं सोयेंगे!

     

    मेरे पिता ने कुछ ज्यादा तो नहीं सोचा था गुरु जी…कोई गाडी-बंगले का सपना तो नहीं देखा था

    वो तो बस इतना चाहते थे कि उनका बेटा पढ़ लिख कर बस इतना कमा ले कि अपना और अपने परिवार का पेट भर सके और उसे उस दरिद्रता का सामना ना करना पड़े जो उन्होंने आजीवन झेली …!

     

    लेकिन पता है मास्टर जी मैंने उनका सपना तोड़ दिया, आज मैं भी उनकी तरह मजदूरी करता हूँ,

    मेरे भी बच्चे कई-कई दिन बिना खाए सो जाते हैं… मैं भी गरीब हूँ….अपने पिता से भी ज्यादा !

     

    शायद आप सोच रहे हों कि मैं ये सब आपको क्यों बता रहा हूँ ?

     

    क्योंकि आज मैं जो कुछ भी हूँ उसके लिए आप जिम्मेदार हैं !

     

    मैं स्कूल आता था, वहां आना मुझे अच्छा लगता था, सोचता था खूब मन लगा कर पढूंगा,

    क्योंकि कहीं न कहीं ये बात मेरे मन में बैठ गयी थी कि पढ़ लिख लिया तो जीवन संवर जाएगा…इसलिए मैं पढना चाहता था…लेकिन जब मैं स्कूल जाता तो वहां पढाई ही नहीं होती.

     

    आप और अन्य अध्यापक कई-कई दिन तो आते ही नहीं…आते भी तो बस अपनी हाजिरी लगा कर गायब हो जाते…या यूँही बैठ कर समय बिताते…..

    कभी-कभी हम हिम्मत करके पूछ ही लेते कि क्या हुआ गुरु जी आप इतने दिन से क्यों नहीं आये तो आप कहते कुछ ज़रूरी काम था!!!

     

    आज मैं आपसे पूछता हूँ, क्या आपका वो काम हम गरीब बच्चों की शिक्षा से भी ज़रूरी था?

     

    आपने हमे क्यों नहीं पढाया गुरुजी…क्यों आपसे पढने वाला मजदूर का बेटा एक मजदूर ही रह गया?

     

    क्यों आप पढ़े-लिखे लोगों ने मुझ अनपढ़ को अनपढ़ ही बनाए रखा ?

     

    क्या आज आप मुझे वो शिक्षा दे सकते हैं जिसका मैं अधिकारी था?

     

    क्या आज आप मेरा वो बचपन…वो समय लौटा सकते हैं ?

     

    नहीं लौटा सकते न ! तो छीना क्यों ?

     

    कहीं सुना था कि गुरु का स्थान माता-पिता से भी ऊँचा होता है, क्योंकि माता-पिता तो बस जन्म देते हैं पर गुरु तो जीना सिखाता है!

     

    आपसे हाथ जोड़ कर निवेदन है, बच्चों को जीना सिखाइए…उनके पास आपके अलावा और कोई उम्मीद नहीं है …उस उम्मीद को मत तोड़िये…

    आपके हाथ में सैकड़ों बच्चों का भविष्य है उसे अन्धकार में मत डूबोइए…पढ़ाइये…रोज पढ़ाइये… बस इतना ही कहना चाहता हूँ!

     

    क्षमा कीजियेगा !

    श्याम।

     

    This post is for those teachers, Who thinks teaching is their job. But it’s not,

    Teaching is their responsibility towards children’s and towards our nation.

    This motivational story in hindi about life.

     

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    कमाल अरबी नस्ल का एक शानदार घोड़ा था। वह अभी एक साल का ही था और रोज अपने पिता – “राजा” के साथ ट्रैक पर जाता था।



    राजा घोड़ों की बाधा दौड़ का चैंपियन था और कई सालों से वह अपने मालिक को सर्वश्रेष्ठ घुड़सवार का खिताब दिला रहा था।

     

    एक दिन जब राजा ने कमाल को ट्रैक के किनारे उदास खड़े देखा तो बोला, ” क्या हुआ बेटा तुम इस तरह उदास क्यों खड़े हो?”

     

    “कुछ नहीं पिताजी…आज मैंने आपकी तरह उस पहली बाधा को कूदने का प्रयास किया लेकिन मैं मुंह के बल गिर पड़ा…मैं कभी आपकी तरह काबिल नहीं बन पाऊंगा…”

     

    राजा कमाल की बात समझ गया। अगले दिन सुबह-सुबह वह कमाल को लेकर ट्रैक पर आया और एक लकड़ी के लट्ठ की तरफ इशारा करते हुए बोला-

    ” चलो कमाल, ज़रा उसे लट्ठ के ऊपर से कूद कर तो दिखाओ।”

     

    कमाल हंसते हुए बोला, “क्या पिताजी, वो तो ज़मीन पे पड़ा है…उसे कूदने में क्या रखा है…मैं तो उन बाधाओं को कूदना चाहता हूँ जिन्हें आप कूदते हैं।”

     

    “मैं जैसा कहता हूँ करो।”, राजा ने लगभग डपटते हुए कहा।

     

    अगले ही क्षण कमाल लकड़ी के लट्ठ की और दौड़ा और उसे कूद कर पार कर गया।

     

    “शाबाश! ऐसे ही बार-बार कूद कर दिखाओ!”, राजा उसका उत्साह बढाता रहा।

     

    अगले दिन कमाल  उत्साहित था कि शायद आज उसे बड़ी बाधाओं को कूदने का मौका मिले पर राजा ने फिर उसी लट्ठ को कूदने का निर्देश दिया।

     

    करीब एक हफ्ते ऐसे ही चलता रहा फिर उसके बाद राजा ने कमाल से थोड़े और बड़े लट्ठ कूदने की प्रैक्टिस कराई।

     

    इस तरह हर हफ्ते थोड़ा-थोड़ा कर के कमाल के कूदने की क्षमता बढती गयी और एक दिन वो भी आ गया जब राजा उसे ट्रैक पर ले गया।

     

    महीनो बाद आज एक बार फिर कमाल उसी बाधा के सामने खड़ा था जिस पर पिछली बार वह मुंह के बल गिर पड़ा था… कमाल ने दौड़ना शुरू किया…

    उसके टापों की आवाज़ साफ़ सुनी जा सकती थी… १…२…३….जम्प….और कमाल बाधा के उस पार था।

     

    आज कमाल की ख़ुशी का ठिकाना न था…आज उसे अन्दर से विश्वास हो गया कि एक दिन वो भी अपने पिता की तरह चैंपियन घोड़ा बन सकता है और इस विश्वास के बलबूते आगे चल कर कमालभी एक कमाल का चैंपियन घोड़ा बना।

     

    दोस्तों, बहुत से लोग सिर्फ इसलिए goals achieve नहीं कर पाते क्योंकि वो एक बड़े challenge या obstacle को छोटे-छोटे challenges में divide नहीं कर पाते।

    इसलिए अगर आप भी अपनी life में एक champion बनना चाहते हैं…

    एक बड़ा लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं तो systematically उसे पाने के लिए आगे बढिए…

    पहले छोटी-छोटी बाधाओं को पार करिए और ultimately उस बड़े goal को achieve कर अपना जीवन सफल बनाइये।

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